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आहार कैसा होना चाहिए। आहार क्या ? आहार संज्ञा क्या ? खाने जैसा क्या है ? नहीं खाने जैसा क्या है ? ये सारे विचार करना ही आहार शुद्धि कहलाती है।
शरीर के लिए उपयोगी और योग्य आहार की ही जरूरत है। उपयोगी आहार वह है जो शरीर को नुकसान न करें। योग्य आहार वह है जो आत्मा और मन को नुकसान न करे।
विवेकपूर्वक परमात्मा की आज्ञानुसार मात्र शरीर को टिकाने के लिए जो खाते हैं वह आहार है। अर्थात् जीने के लिए खाना वह आहार है।
आसक्ति एवं राग पूर्वक भक्ष्य-अभक्ष्य के विवेक बिना खाना आहार संज्ञा है। अर्थात् खाने के लिए जीना आहार संज्ञा है।
आहार से शरीर स्वस्थ और अपने कार्य में समर्थ बनता है। जबकि आहार संज्ञा से शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं एवं मन में दोष उत्पन्न होते हैं।
आहार संज्ञा के लोभ में जीव भक्ष्य (खाने योग्य) एवं अभक्ष्य (नहीं खाने योग्य) आहार का भी विचार नहीं करता तथा कर्मबंध कर नरक निगोद में दु:ख भोगता है। इस दु:ख से मुक्त होने के लिए अभक्ष्य आहार को समझकर छोड़ना खूब जरूरी है।
अभक्ष्य के बाईस प्रकार 1 से 5 6 से 9 10 11 12 13 14 15 16 17 पंचुंबरि चउविगई हिम विष करगे अ सव्वमट्टीअ राइभोअणगं चिय बहुबीअ अणंत संधाणा 18 19 20 .
21 22 घोलवडा वायंगण अमुणिअ नामाईं पुप्फ फलाई तुच्छ फलं चलिअरसं वज्जे वज्जाणि बावीसं ।। (1 से 5) उदूंबर-गूलर आदि फल : (1) वट वृक्ष (2) पीपल (3) पिलंखण (4) काला उदंबर और (5) गूलर इन पाँचों के फल अभक्ष्य हैं। इन में अनगिनत बीज होते हैं। असंख्य सूक्ष्म त्रस जीव भी होते हैं। उन्हें खाने से न तृप्ति मिलती है, न शक्ति। और यदि इन फलों के सूक्ष्म जीव अगर मस्तिष्क में प्रवेश कर जाएँ तो मृत्यु भी हो सकती है। इन जीव-जंतुओं के कारण रोगोत्पत्ति की तो शतप्रतिशत संभावना होती है। अत: इन पाँचों का त्याग करना चाहिए। (6) शहद : कुत्ता, मक्खियाँ, भँवरे आदि की लार एवं वमन से शहद तैयार होता है। मधु मक्खी फूलों से रस चूसकर उसका छत्ते में वमन करती है। छत्ते के नीचे धुंआ कर के वहाँ से मधुमक्खियों को उडाया जाता है। तत्पश्चात् इस छत्ते को निचोड़कर शहद निकाला जाता है। निचोड़ने की इस क्रिया में कई अशक्त मधुमक्खियाँ एवं उनके अंडे नष्ट हो जाते हैं और सभी की अशुचि शहद में मिल जाती है। तथा उस में अनेक प्रकार के रसज जीवों की भी उत्पत्ति होती है। इस तरह शहद अनेक जीवों की हिंसा का कारण होने से खाने में उसका त्याग करना ही श्रेयस्कर है। दवाई के प्रयोग में घी, दूध, शक्कर, मुरब्बा आदि से काम चल सकता है, अत: शहद का उपयोग दवा लेने तक में भी न करना हितावह है।
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