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वंदनादि का लाभ ले सकते हैं। प्रश्न : गुरू से कितनी दूरी पर रहना चाहिए? उत्तर : श्रावक एवं साधु को गुरू से 31/, हाथ दूर रहना चाहिए।
श्रावक एवं साधु को साध्वीजी से 13 हाथ दूर रहना चाहिए। श्राविका एवं साध्वीजी को साधु भगवंत से 13 हाथ दूर रहना चाहिए।
श्राविका एवं साध्वीजी को साध्वीजी (गुरूणी) से 31/, हाथ दूर रहना चाहिए। प्रश्न : गुरू की 33 आशातना में से कुछ बताओं? उत्तर : गुरू के आगे, पास में या पीछे अत्यंत नजदीक खड़ा रहना, बैठना या चलना। गुरू को
गोचरी नहीं बताना, उनके बुलाने पर उठकर नहीं जाना। उनके आसन को पैर लगाना, उनकी भूल निकालना, गुरू को या स्थापना (यानि - फोटो आदि) को पैर लगाना, थूक
लगाना, उनकी आज्ञा को भंग करना अथवा स्थापनाचार्य को तोड़ना वगैरह प्रश्न : गुरूवंदन करते समय हृदय कैसा होना चाहिए? उत्तर : गुरूवंदन करते समय गुरू के महान् गुणों को नजर में रखते हुए, उनके प्रति हृदय
अहोभाव से झुका हुआ होना चाहिए एवं कोई दोष या अहंकार का सेवन न हो जाए उसका पूरा ख्याल रखते हुए 25 आवश्यक का बराबर पालन करते हुए गुरूवंदन
करना चाहिए। प्रश्न : द्वादशावर्त वंदन करने से क्या लाभ होता है? उत्तर : 84 हजार दानशाला बंधवाने से जितना लाभ होता है, उतना पुण्य गुरु को सामूहिक द्वादशावर्त वंदन करने से होता है।
B. दीक्षा की महत्ता एक दरिद्र पुत्र ने दीक्षा ली। उसको गांव के लोग चिड़ाने लगे कि पैसा नहीं था, इसलिए दीक्षा ली। उससे सहन नहीं हुआ। उसने गुरु से कहा – यहाँ से विहार करो। तब अभयकुमार ने गुरु को विहार करने से मना किया और लोगों को त्याग का महत्व बताने के लिए गांव में ढंढेरा बजवाया कि यहाँ पर रत्नों के तीन ढेर लगाये गये हैं, जो व्यक्ति अग्नि, स्त्री (पुरुष) एवं कच्चे पानी का त्याग करेगा उसे ये ढेर भेंट दिये जायेंगे। कई लोगों की भीड़ लगी पर कोई एक भी वस्तु का त्याग करके संसार में रहने के लिए तैयार नहीं हुआ। अभयकुमार ने कहा इस बालक ने इन तीनों का त्याग किया है। इसे यह रत्न दिये जाते हैं। लेकिन बालक साधु ने कहा कि मुझे नहीं चाहिए। तब लोगों को दीक्षा का महत्व पता चला कि इसने कितना महान कार्य किया है, तो सब उसे पूजने लगे।
जो त्याग करता है उसे सब पूजते हैं। उन्हें सब सामने से मूल्यवान वस्तु वहोराते हैं। भिखारी के पास भी कुछ भी धन नहीं है। वह भी भीख मांगता है। लेकिन उसको कोई नहीं देता । उसका मूल्य नहीं ८ है, क्यों ? खुद सोचना।
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