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________________ आराधना करते समय उनके मन में यह भावना और भी उत्कृष्ट और तीव्र बन जाती है तब वे तीर्थंकर नामकर्म का बंध करते है। फिर देव या नारकी का भव करके अंतिम भव तीर्थंकर के रुप में शुरु होता है। इस भव में जब तीर्थंकर नामकर्म का उदय होता है। तब वे जिनशासन रुपी तीर्थ की स्थापना करते है। वैसे उनमें रहा हुआ करुणा गुण जब पराकाष्टा तक पहुंचता है तब तीर्थंकर पद निश्चित हो जाता है। इसलिए सभी तीर्थंकरों की माता करुणा है, ऐसा कहा जाता है। उनकी करुणा ऐसी अद्भुत होती है कि जिसके प्रभाव से अंतिम भव में उनके माँस और रक्त का वर्ण गाय के दूध जैसा सफेद होता है। जिस तरह माता को अपने पुत्र के प्रति वात्सल्य होने से उसके स्तन का रक्त दूध बन जाता है, उसी प्रकार परमात्मा को विश्व के तमाम जीवों पर अपार वात्सल्य होने के कारण मात्र किसी एक अंग में नहीं बल्कि पूरे शरीर में खून के बदले दूध बहता है। ____ अरिहंत परमात्मा के इस अपूर्व वात्सल्य को सूचित करने के लिए अरिहंत पद का सफेद वर्ण होता है। 6. नाद-घोष (दीक्षा सम्बन्धी) 1. दीक्षार्थी अमर बनो 2. काजू, बादाम, पिस्ता मुमुक्षु बेन (नाम) की दीक्षा 3. मोटर, गाडी, रिक्शा मुमुक्षु बेन (नाम) की दीक्षा 4. मारी बेन दीक्षा ले छे वाह भाई वाह, वाह भाई वाह 5. ओघो लेइने नाचे कौन मुमुक्षु बेन, मुमुक्षु बेन 6. गोचरी लेवा जाशे कौन मुमुक्षु बेन, मुमुक्षु बेन 7. धर्मलाभ आपशे कौन मुमुक्षु बेन, मुमुक्षु बेन 8. संसार कालो नाग छे संयम लीलो बाग छे 9. एक धक्का और दो संसार को छोड दो 10. लेवा जेवू शुंछे संयम.... संयम... 11. छोडवा जेवू शुं छे संसार... संसार... 12. जय-जय कार, जय-जय कार : दीक्षार्थी की जय-जय कार 13. जब तक सूरज चांद रहेगा दीक्षार्थी का नाम रहेगा -27
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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