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________________ तीन लोक के नाथ, परमपिता, अरिहंत परमात्मा का तेज सूर्य से भी ज्यादा होता है। तो ऐसे परमात्मा के सामने हम कैसे देख सकते है। इसलिए परमात्मा के पीछे देव भामंडल की रचना करते है। जिससे परमात्मा का तेज भामंडल में समा जाता है। इससे भगवान के पीछे चमकता हुआ गोलाकार बनता है। इस तरह भगवान को आसानी से देखा जा सकता है। समवसरण में चारों भगवान के पीछे एक-एक भामंडल होता है। 7. देव-दुंदुभी: परमात्मा की देशना से पहले आकाश में देव जोर-जोर से ढोल नगाडे बजाते है। मानो कि लोगों को देशना में आने के लिए आमंत्रित कर रहे हो। हे भव्यजीवों ! मोक्षनगरी की तरफ ले जाने वाला सारथी यहां आया है। अगर आपको भी मोक्ष में जाना हो तो इस सारथी की भक्ति करो। सारथी याने परमात्मा की शरण में आओ। 8. तीन छत्र: ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्छालोक, इन तीन लोक के नाथ अरिहंत परमात्मा है। यह सूचित करने के लिए देव परमात्मा के ऊपर तीन छत्र बनाते है। चारों दिशा में तीन-तीन इस तरह कुल 12 छत्र होते है। प्रश्न: चार अतिशय कौन कौन से? उत्तर: तीन लोक के नाथ देवाधिदेव परमात्मा के विशिष्ट पुण्य का प्रभाव जिसके माध्यम से पता चलता है उन्हें अतिशय कहते है। * चार अतिशय इस प्रकार से है :1. ज्ञानातिशय: हम अपने सामने की तरफ देख सकते है, सिर हिलाए बिना पीछे नहीं देख सकते। टी.वी. में हम एक समय पर सिर्फ अमरीका में हो रही घटना को जान सकते है, लेकिन उसी समय रशिया में हो रही घटना को नहीं जान सकते । स्वर्ग और नरक तो वैज्ञानिक टेलीस्कोप की सहायता से भी नहीं देख सकते जबकि परमात्मा को जो केवलज्ञान प्राप्त हुआ है, उसके प्रभाव से वे स्वर्गनरक, इस लोक की तमाम घटनाएँ भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल की सभी घटनाएँ एक साथ एक समय में देख सकते है। कोई भी जानकारी उनसे छिपी नहीं रह सकती। 2. वचनातिशय: भगवान तो अर्धमागधी भाषा में देशना देते है। लेकिन भगवान की वाणी में ऐसा अतिशय होता है कि जिसके प्रभाव से उनकी वाणी सभी प्राणी अपनी-अपनी भाषा में समझ जाते है। देवदेवियों को देवों की भाषा में, पशु-पक्षियों को उनकी भाषा में और मानवों को अपनी-अपनी भाषा में परमात्मा की वाणी समझ में आ जाती है। भगवान की वाणी 35 गुणों से युक्त होती है। 3. पूजातिशय: परमात्मा का पुण्य इतनी ऊँची कक्षा का होता है कि मनुष्य, राजा, चक्रवर्ती, देव-देवेन्द्र आदि उनकी पूजा करने के लिए लालायित रहते है। देव समवसरण की रचना करते है। 19 प्रकार के अतिशय करते है। परमात्मा जब चलते है तो उनके पैर रखने के लिए देव नौ सुवर्ण कमलों की रचना करते है। पक्षी परमात्मा को प्रदक्षिणा देकर आगे निकलते है। काँटे स्वयं उल्टे हो जाते है। वृक्ष 24
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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