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________________ 5. नवपद A. नमस्कार महामंत्र प्रश्न: नमस्कार महामंत्र सूत्र का नाम पंचपरमेष्ठि सूत्र क्यों है ? उत्तर: इस सूत्र में पाँच परमेष्ठि भगवंतों को नमस्कार किया गया है। इसलिए इस सूत्र का नाम पंचपरमेष्ठि नमस्कार सूत्र है। प्रश्न: पाँच परमेष्ठि में कौन कौन आते है ? उत्तर: पाँच परमेष्ठि में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंत आते है। प्रश्न: नमस्कार याने क्या ? उत्तर: नमस्कार याने नमन करना, मस्तक झुकाना, प्रणाम करना, दो हाथ जोडकर वंदन करना आदि। इसे क्रियात्मक (दिव्य) नमस्कार कहा जाता है। यह करते वक्त हृदय में अत्यंत बहुमान, आंतरिक प्रीति और मन का लगाव होना चाहिए। उल्लास-उमंग भक्ति -बहुमान भाव पूर्वक किए हुए नमन को भाव नमस्कार कहा जाता है। प्रश्न: परमेष्ठि किसे कहते है ? उत्तर: इस लोक में रहे हुए सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों को परमेष्ठि कहते है। उनसे बढकर और कोई नहीं हो सकता। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंत इस लोक के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है क्योंकि वे उत्तम गुणों के स्वामी है। वे संसार के विषय कषायों से अलिप्त है। और निजध्यान में लीन है। प्रश्न: परमेष्ठि भगवंतों को नमस्कार करने से क्या लाभ होता है ? उत्तर: पानी चाहिए तो पानी से भरे घडे के पास जाना पडता है। कपडे चाहिए तो कपडे की दुकान में जाना पडता है। उसी तरह जिसे सद्गुण प्राप्त करने की इच्छा होती है उसे सद्गुणों के स्वामी के पास जाना पडता है। इस दुनिया में देखा जाएं तो धन की इच्छा वाला व्यक्ति धनवान के पीछे दौडता है। सत्ता/कुर्सी की इच्छा वाला व्यक्ति मंत्री/राजनेता के पीछे घूमता है। यदि हमें पुण्य चाहिए, गुण चाहिए, शुद्धि चाहिए तो, पुण्य, गुण और शुद्धता के स्वामी परमेष्ठि भगवंतों की सेवा करनी चाहिए। उनके चरणों में झुकना चाहिए। उन्हें भावपूर्वक नमस्कार करना चाहिए। ऐसा करने से हम भी एक दिन उनकी तरह पुण्य, गुण और शुद्धता के स्वामी बनेंगे। प्रश्न: पाँच परमेष्ठियों में से प्रथम परमेष्ठि अरिहंत किसे कहा जाता है ? उत्तर: अरि = शत्रु ; हंत = नाश करने वाले ___ शत्रुओं का नाश करने वाले अरिहंत कहलाते है। शत्रु याने लोग जिन्हें शत्रु मानते है, वो नहीं। _ लेकिन राग-द्वेष रुपी आत्मा के शत्रु । आत्मा के सच्चे शत्रु तो राग-द्वेष आदि दुर्गुण ही है। वे आत्मा को 20
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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