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जैन तत्त्व दर्शन
7. मदनरेखा
सुदर्शनपुर नामक नगर में मणिरथ राजा राज्य करते थे। उनके छोटे भाई युगबाहु की अत्यन्त रूपवती स्त्री थी मदनरेखा ।
मणिरथ राजा मदनरेखा पर मोहित हो गया और उसे विविध वस्त्र आभूषण दासी के द्वारा भेजकर उसे खुश करने की कोशिश करता है । मदनरेखा समाचार भिजवाती है कि राजा के पास तो इतना उत्तम अंतःपुर है, तो वे क्यों परस्त्री गमन जैसा महापाप इच्छते हैं ? वे कितनी भी कोशिश करें, लेकिन मुझे हासिल नहीं कर सकते ।
मणिरथ राजा की कामवासना कम न हुई तो उसने युगबाहु को अपने रास्ते से हटाना चाहा और
एक रात एकांत में अपने ही भाई की हत्या कर दी । मदनरेखा ने मृत्युशैय्या पर पड़े अपने पति से कहा- 'हे स्वामी! आप अभी थोड़ा भी वेद न करें। शत्रु, मित्र, स्वजन, परिजन सभी को क्षमा दीजिए और सभी से प्रत्यक्ष क्षमा मांग लीजिए। इस प्रकार अपने पति को अंतिम आराधना कराई ।
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पति की मृत्यु के पश्चात् मदनरेखा विचारने लगी- 'मुझे धिक्कार हो । मेरे रूप के कारण मेरे पति की मृत्यु हुई । अब पति-विहोणी जानकर मणिरथ मुझे पकड़कर मेरा शील लूटने की कोशिश करेगा।' गर्भवती मदनरेखा गुप्त रीत से वहाँ से निकल गयी ।
एक घने जंगल में सात दिन रहने के पश्चात उसने एक पुत्र को जन्म दिया । सरोवर में वस्त्र धोने उतरी तो एक जलहस्ती ने उसे सूंड में पकड़कर आकाश में उछाला। तभी एक विद्याधर ने उसे बचा लिया और वह भी उसके रूप से मोहित हो गया । उसने जब मदनरेखा से अपने मन की बात बतायी तो मदनरेखा विचारने लगी'ओह! मेरे कर्म नड रहे हैं । दुःख ऊपर दुःख आ रहे हैं । शीलरक्षा के लिए मुझे कोई बहाना निकालकर समय पसार करना चाहिए ।'
मदनरेखा के कहने पर विद्याधर ने अपने (विद्याधर के) पिता मुनि से धर्मोपदेश श्रवण किये । उसका मन परिवर्तित हो गया और उसने मदनरेखा को अपनी बहन स्वीकार कर दिया । मदनरेखा साध्वी भगवंत को वंदनार्थ गयी । धर्मवाणी सुनकर उसने वही चारित्र ग्रहण किया। और उत्कृष्ट चारित्र पालन कर केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष गये ।
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