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जैन तत्त्व दर्शन
देवकी के विवाह प्रसंग पर अईमुत्ता मुनि ने कंस की पत्नी जीवयशा को कहा कि “देवकी की सातवी संतति कंस का घात करेगी"। इसलिये मृत्यु से भयभीत बने हुए कंस ने देवकी के प्रथम सात संतानों को वसुदेव से प्राप्त करने की स्वीकृति प्राप्त कर उन्हें मारने का संकल्प किया, परन्तु जन्म पानेवालों का पुण्य प्रबल होने से क्रमशः जब देवकी के पुत्र जन्म पाते गये, तब हरिनैगमेषी उन्हें सुलसा के पास रख देता और सुलसा के पास से मरी हुई संताने देवकी के पास रख देता। ___ कंस उन मुर्दो पर छुरी चला देता और खुश होता। इस प्रकार छः संतानों का वियोग देवकी को हुआ | बाद में उन छः संतानों ने नेमिनाथ भगवान के वचन से प्रतिबोध पाकर दीक्षा ली। देवकी से जब सातवीं संतान कृष्णजी जन्म पाए, तब वसुदेव ने उन्हे यशोदा को सौंपा और उसकी लड़की देवकी के पास रखी। कंस ने उसकी नाक काट ली। इस प्रकार छः पुत्रों की वियोग हुआ। एक रत्न वापस दिया था, इसलिये कृष्ण का थोडे समय के लिये वियोग हुआ, परंतु बाद में स्वंय उन्हें कुछ समय बड़ा कर सकी।
इससे हमें सीखना चाहिये कि ईर्ष्या अथवा लोभ से किसी भी प्रकार की चोरी अपने जीवन में हो गयी हो, तो अवश्य प्रायश्चित्त की निर्मल गंगा में स्नान करके शुद्ध और भाररहित हो जाना चाहिये।
4. ढंढण कुमार और अंतराय
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ढंढण कुमार का जीव पूर्व भव में किसानों का निरीक्षक था, परन्तु जब किसानों को भोजन करने की छुट्टी का समय होता, तब वह किसानों से कहता “एक-एक चक्कर मेरे खेत में काट दो, जिससे मुझे खेत जोतना न पड़े।" इस प्रकार मुफ्त में काम करवा कर उसने भोजन में अंतराय किया और असकी आलोचना