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________________ जैन तत्त्व दर्शन 9. भोजन विवेक 22 अभक्ष्य * पाँच फल * (1) वट वृक्ष (2) पीपल (3) पिलंखण (4) काला उदूंबर और (5) गूलर * चार महाविगई * (6) शहद (7) शराब (मदिरा) (8) मांस (9) मक्ख न (10) बर्फ (हिम) (11) जहर (विष) (12) ओला (13) मिट्टी (14) रात्रि भोजन (15) बहुबीज (16) अनंतकाय-जमीनकंद (17) अचार (18) द्विदल (19) बैंगन (20) अनजाना फल, पुष्प (21) तुच्छ फल (22) चलित रस * रात्रि भोजन * यह नरक का प्रथम द्वार है। रात को अनेक सूक्ष्म जंतू उत्पन्न होते हैं। तथा अनेक जीव अपनी खुराक लेने के लिए भी उड़ते हैं। रात को भोजन के समय उन जीवों की हिंसा होती है। विशेष यह है कि यदि रात को भोजन करते समय खाने में आ जाएँ तो जूं से जलोदर, मक्खी से उल्टी, चींटी से बुद्धि मंदता, मकड़ी से कुष्ठ रोग, बिच्छु के काँटे से तालुवेध, छिपकली की लार से गंभीर बीमारी, मच्छर से बुखार, सर्प के जहर से मृत्यु, बाल से स्वरभंग तथा दूसरे जहरीले पदार्थों से जुलाब, वमन आदि बीमारियाँ होती हैं तथा मरण तक हो सकता है। रात्रि भोजन के समय अगर आयुष्य बंधे तो नरक व तिर्यंच गति का आयुष्य बंधता है। आरोग्य की हानि होती है। अजीर्ण होता है। काम वासना जागृत होती है। प्रमाद बढ़ता है। इस तरह इहलोक परलोक के अनेक दोषों को ध्यान में रखकर जीवनभर के लिए रात्रि-भोजन का त्याग लाभदायी है।
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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