________________
जैन तत्त्व दर्शन
प्रश्न 4 : अपने भगवान सबसे महान् क्यों हैं ? उत्तर : क्योंकि दुनिया के सभी देवी-देवता के स्वामी जो 64 इन्द्र हैं वे भी प्रभु के दास बनकर सेवा
करते हैं। प्रश्न 5 : प्रभुकी इन्द्रादिदेव सेवा क्यों करते हैं? उत्तर : क्योंकि प्रभु ने पूर्वभव में "सवि जीव करूँ शासन रसी" की शुभ भावना से तीर्थंकर नाम कर्म
उपार्जित किया था | उस साधना में प्रभु ने सतत सब जीवों को तारने की शक्ति उपार्जित की है। इन्द्र महाराजा जानते हैं कि इनकी सेवा से ही शाश्वत सुख मिल सकता है।
इससे यह ज्ञात होता है कि प्रभुही सब सुख देते हैं। प्रश्न 6 : सब भगवान के फोटो सामने रखो, तो सबसे शांत स्वरूप किसका लगेगा ? उत्तर : वीतराग प्रभु ही सबसे शांत मुद्रा वाले हैं। जिनको देखते ही मस्तक झुक जाता है और वे
ही माध्यस्थ भाव वाले होने से बिना पक्षपात सबके लिए समान हितकारी हो सकते हैं। प्रश्न 7 : भगवान सबके लिए हितकारी हैं तो हमें मोक्ष क्यों नहीं देते?
भगवान तो हमें मोक्ष देने के लिए तैयार हैं लेकिन जब तक हम संसारका पक्षपात एवं उसकी
पकड़ नहीं छोड़ते तब तक हमें मोक्ष नहीं मिलता। प्रश्न 8 : संसारका पक्षपात कैसे छूट सकता है ? उत्तर : सब जीवों के साथ मित्रता रखने से संसार का पक्षपात छूट सकता है। प्रश्न : क्या ईश्वर ने यह जगत बनाया है ? उत्तर : जैन दर्शन के अनुसार ईश्वर जगत को बनाते नहीं है। क्योंकि अगर ऐसा माना जाय कि
ईश्वर जगत को बनाते हैं तो निम्न उलझनें पैदा होती है:(अ) ईश्वर ने बनाया तो कहाँ बैठकर बनाया ? ईश्वर को किसने बनाया ? (आ) ईश्वर का शरीर कहाँ से आया ? ईश्वरने हिंसक कसाइयों को क्यों बनाया ? (इ) ईश्वर ने यह विश्व क्यों बनाया ? ईश्वरने नरक आदिदुर्गति क्यों बनाई ? (ई) विश्व बनाया तो सबको सुखी, ज्ञानी, सुंदर, धनवान क्यों नहीं बनाया ? विश्व में विचित्रता क्यों की? (उ)अतःजगत को बनानेवाला ईश्वर नहीं है। ईश्वर तो जगत को बताने वाले हैं। भगवान जगत के कर्ता या सर्जक नहीं है परंतु ज्ञाता, दृष्टा और दर्शक है।