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जैन तत्त्व दर्शन
(3) पुष्प पूजा
पुष्प पूजा का रहस्य
इस पूजा द्वारा हमारा जीवन पुष्प जैसा सुगंधित बने और सद्गुणों से सुवासित बने।
सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप सुमजंतु भव्य ज परे, करिये समकित छाप ।।
ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय
श्रीमते जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा।
भावना हे प्रभु! नंदनवन के पुष्प तो मैं नही ला सका पर ये जो भी सुगंधित, सप्तरंगी पुष्प ले आया हुँ उनको स्वीकार कीजिए । भले श्रेष्ठ पुष्प को तो मैं नही ला पाया परंतु श्रेष्ठ भाव तो अवश्य ले कर आया हुँ | इस पुष्प पूजा द्वारा मेरी एक ही प्रार्थना है कि अनादिकाल से मिथ्यात्व रूपी दुर्गंध से व्याप्त मेरी आत्मा सम्यग्दर्शन की सुगंध से महक उठे।
हे प्रभु ! मैं तेरी प्रतिमा पर सुगंध फैला रहा हूँ। तू मेरे हृदय में तेरी भक्ति की सुगंध फैला दे। मेरे भीतर रहे दोषों और दुर्गुणों की दुर्गंध दूर कर पाऊँ और सद्गुणों की सुगंध पा सकूँ ऐसा सामर्थ्य मुझे
प्रदान कर।
हे प्रभु ! समस्त सृष्टि को सुवासित कर सके, तेरा तो ऐसा सामर्थ्य है-पर मेरी प्रार्थना तो मात्र इतनी है कि मैं केवल स्वयं को ही सद्गुणों से सुवासित कर सकूँ ऐसी शक्ति तो मुझे दे दो। पुष्प पूजा करने वाले नागकेतु को आपने केवलज्ञान दिया-मुझे समयक्त्व तो देदो प्रभु।