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________________ जैन तत्त्व दर्शन मी लाख चौराशी हूँ आव्यो, पुण्ये दर्शन तमारा हु पाम्यो, धन्य दिवस मारो, भवना फेरा टालो, जिनजी प्यारा । अतो मायाना विलासी, तुमे छो मुक्ति पुरीना वासी, कर्मबंधन कापो, मोक्ष सुख आपो, जिनजी प्यारा । आदिनाथ ॥ 3 ॥ आदिनाथ. ॥ 4 ॥ अरजी माँ धरजो हमारी, अमने आशा छे प्रभुजी तमारी, कहे हर्ष हवे, साचा स्वामी तमे, पूजन करीये अमें, जिनजी प्यारा । आदिनाथ. ।। 5 ।। E. श्री स्तुति संग्रह 1. श्री सीमंधर स्वामी जिन स्तुति सीमंधर जिनवर, सुखकर साहिब देव, अरिहंत सकलनी, भाव धरी करूं सेव ॥ सकलागम पारग, गणधर भाषित वाणी, जयवंती आणा, ज्ञानविमल गुण वाणी ॥ 2. श्री शत्रुंजय तीर्थ स्तुति सिद्धाचल मंडण ऋषभ जिणंद दयाल, मरुदेवा नंदन, वंदन करु त्रण काल । ए तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार, आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार ॥ 15
SR No.006117
Book TitleJain Tattva Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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