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प्रस्तावना।
प्राचीन सवनोनी शोधखोलना तेमज तेने छपावी प्रसिद्ध करवाना दुर्घट कार्यने पसार करी, अमारी अत्यन्त महेनतनुं परिणाम दूनियानी दृष्टि सन्मुख उपस्थित करता, अमारो वास्तविक हर्ष जाहेर करवानी स्वाभाविक लागणीरोकी शकता नथी. एक समय एवो पण हतो के जे वखते संस्कृत भाषामांकहोके देववाणीमां रचायेला, जिनेन्द्र भगवानना मधुर स्तवनोथी, समस्त भारतवर्षना दरेके दरेक शहरमांना देव मंदिरो-देरासरो गुंजी उठतां हतां. परन्तु पंचम कालना दोषमय प्रभावना कालक्रमे करीने धीमे धीमे संस्कृत भाषानुं ज्ञान ओर्छ थवा लाग्युं, अने भाषामां स्तवनो रचावा लाग्या, तेओनी साथेआजकालना स्तवनोनो मुकाबलो करी वांचनाराओना हृदयने दुःखित नहीं करीए. परन्तु स्पष्ट थवा एटलुं तो जरूर कहेशं के संस्कृत स्तवनो तरफ जन समूहनी एवी तो उपेक्षा बुद्धि एटले सूधी वधवा लागी के हस्त लिखित प्रतोना पानाओ भंडारमांने भंडारमा सडवा लाग्या. आवीज बुरी दशा जो थोडो वखत चालया करशे तो जैनोना अखुट ज्ञानभंडारमांथी कहोके महासागरमांथी घणु दुःखदायक