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________________ [ ३१ ] शुद्धिनुं कारण. हठयोग तात्कालिक गुण कर्ता जणाशे, परन्तु ते वास्तविक आत्मशुद्धिने आपनार नथी. मर्कट तुल्य मनने बलात्कारे बांधवाथी फायदो मात्र बन्धन समय पर्यन्त छे. त्यांथी छूटुं पडयुं के तरतज चंचळवभाव वाळु थाय छे. तेथी हठयोगमां जेवू नाम तेवा गुण छे. ज्ञान दर्शन अने चारित्रवान् पुरुषो सिवाय सहज समाधि बीजाने मळती नथी. हवे अन्तिम थोडा शब्दोथी हितोपदेश दह मारुं व्याख्यान पुरुं करीश. कर्म विना जगत् विचित्र रचना वाळु बनी शके नहिं. तथा ते कर्मनी सत्ता आत्मा विना कदापि सिद्ध थाय नहि. आत्मा कर्मकिच्चडथी मुक्त थाय के त्यारे परमात्मा गणायछे, माटे परमात्मानी उच्च दशा मेळववा हमेशां शुभ विवारनी सुन्दर पद्धतिनो स्वीकार करशो. स्वप्नान्तरमां पण जडवादीना जडवादमां मुंझाशो नहिं. वीर प्रभुना यथार्थ वचनोपर विश्वास राखजो. वैराग्य वासित अन्तःकरण वाळा थईने राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ , ईर्ष्या , अज्ञान , विषय , विकारादिनो बनती त्वराए त्याग करजो. परोपकारने स्वोपकार मानजो. आ पाठशाला (श्रीयशोविजय जी जैन बनारस पाठशाला) मां विद्याभ्यास करी जगदुद्धार मारे कटीबद्ध थजो. छेवटे धर्मलाभ साथे व्याख्या
SR No.006110
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherShah Harakchand Bhurabhai
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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