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________________ * QUÄVÄTEEN VS પૂજ્યશ્રીએ આજ સુધી ખ'ડનશૈલિ અપનાવી ન હતી, જ્યારે સંન્યાસીએ તે છડે-ચાક શાંકર-વેદાંતની પર’પરાએ અદ્વૈતવાદને આગળ કરી બીજા બધાંને હડહડતા ખાટા કહી તિરસ્કૃત કરેલા. એટલે આવનારા જિજ્ઞાસુએ પૂજ્યશ્રીની ગ'ભીરતાને પારખી પૂજ્યશ્રીને વિનંતી કરી કેमहाराज । हम इन शास्त्रोमें क्या समज्ञे ? ये सब विद्वानों का काम हैं । किंतु हमारे संन्यासी महाराज जो कहते हैं उसके लिए आपका क्या मंतव्य ? क्या सचमुच आप जैनधर्मी ईश्वरको नहीं मानते क्या ? और सनातन धर्मकीं बातो में और आपकी बातों में फर्क है ? हमतो इतना हीं जानना चाहते हैं !. ८८ पून्यश्री उद्धु }- महानुभावो आप लोग भी व्यापारी हैं, हजारों का नफा-नुकशान समजनेकी हैंसियत रखते हैं- सीधी-सादी वात होते हुए भी विचारोकी पकड़ के कारण लोंगों के सामने विकृत करके रखने में क्या फायदा ? संन्यासी महाराज जो कहते हैं उसमें रहे हुये सत्यको स्वीकारने में हमें कोई संकोच नहीं ! किंतु सत्य तो है तो हैं ! उसे अपनी बुद्धि के अनुरुप बनानेका दुष्प्रयत्न तो सत्यको विकृत बना देता हैं. हम जैनधर्मी ईश्वरको पूर्ण रूपसे मानते हीं हैं ! देखो ! ये हजारों मंदिर लाखों - क्रोडोंकीं लागतके जैनोंने ही बनवाये उनकी पूजा आदि भी कितनी भाब- भगति से की जाती हैं ? जैनी ईश्वरको नहीं मानते है ! यह कहना सरासर झूठ हैं ! हाँ ! ईश्वरको मानते हुऐ भी उसके स्वरूपमें भेद हैं, अनंतगुण संपन्नअनंत - शक्तिशाली परमेश्वर - परमात्माको ईश्वरके रूपमें जैनी मानते हैं ! फिरभी ईश्वर पर जगत्कर्तृत्व जो दलीलोंके सहारे रोपा गया है, उस पर जैनोंका विश्वास नही ! આટલું પૂજયશ્રીએ કહી જગત્કર્તૃત્વવાદનું ટુંકું નિરૂપણ કરી તેના ખુલાસાએ રજુ કર્યાં, જે સાંભળી આવેલ સનાતનધમી ખૂબ પ્રસન્ન થયા. छेस् त भ धुंडे - 'महाराज ! सनातन-धर्म और जैनधर्म में खास फर्क क्या ? यह जानना जरुरी हैं- पूज्य श्री अह्यं - महानुभावो ! यह चीज तो काफी लंबी-चौडी है, किंतु फिर भी संक्षेप में जैनधर्म' त्याग-प्रधान एवं आचार-शुद्धि पर अधिक जोर देता है, जैनधर्म में कर्मवादका सिद्धान्त एवं स्याद्वाद - अनेकांतवाद और कठिन जीवनचर्या प्रधानरूपसे मुख्य है સનાતનીએ પૂજ્યશ્રીની શાંત-ઉદાત્ત પ્રવૃત્તિ નિહાળી ખૂબ જ સાષ પામી જૈનધમની વિશેષતાઓથી પ્રભાવિત બની સ્વસ્થાને ગયા. જિજ્ઞાસુભાવથી મુલાકાતે આવેલ संन्यासी भहारान पासे ४४ निज्ञासु लाई यो वात पुरी - महाराज ! हम जैनी-धर्माचार्य के पास गये थे, उनकी बातोंसे उनकी उद्दात्त प्रकृतिका परिचय पाया है, वे बडे मधुर स्वभाव के शांत प्रकृतिके महात्मा हैं, उन्होंने हमे जैनधर्मके बारेमें संक्षेपमें बहुत अच्छा समझाया - उनको सनातन धर्मके बारेमें भी काफी जानकारी है, तो हमारी नम्र अरज हैं कि आप अपने प्रवचन में अपनी बात ढंगसे समझाइए, किंतु दूसरो पर कटाक्ष रूप एवं जैनधर्म के बारेमें आक्षेपात्मक बाते न कहें तो अच्छा । नाहक ही भोली जनता धोखे में पडतीं हैं और धर्मके नाम पर झमेला - बवंडर शायद उठ जाय, एसा हो तो हमारी शान्ति बिगडे ! આ भा २४ કા 5
SR No.006069
Book TitleAgam Jyotirdhar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchansagar, Suryodaysagar, Abhaysagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1983
Total Pages468
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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