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समाधि भावना
दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ । देहान्त के समय में, तुमको न भुल जाऊँ ।।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ। समता का भाव धरकर, सबसे क्षमा कराऊँ ।।
त्यामुँ आहार पानी, औषध विचार अवसर । टूटे नियम ना कोई, दृढता हृदय में लाऊँ ।।
तुम
नहीं कषायें, नही वेदना सतावे ।
से ही लौ लगी हो, दुर्ध्यान को भगाऊँ ।।
आतम स्वरुप अथवा, आराधना विचारूँ । अरहंत सिद्ध साधु, रटना यही लगाऊँ ।।
धर्मात्मा निकट हो, चरचा धरम सुनावे | वो सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊँ ।
ने की हो न वांछा, मरने की हो न ख्वाइश | परिवार मित्रजन से, मैं मोह को हटाऊँ ।।
भोगे जो भोग पहेले, उनका न होवे सुमरन । मैं राज्य सम्पदा या, पद इन्द्र का न चाहूँ ।।
रत्नत्रय का हो पालन, हो अन्त में समाधि | 'शिवराम' प्रार्थना यह, जीवन सफल बनाऊँ ।
ભાવના ભવનાશીની
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