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आतम अनुभव रीति वरीरी. आतमO I
मोर बनाए निजरूप निरुपम. तिच्छन रुचिकर तेग घरीही ॥ आतमO।।2।।
टोप सन्नाह श्रको बानो, एक तारी चौरी पहिरीरी
सत्ता थल में मोह विदारत, ऐऐ रिजन मुह निसरीरी केवल कमला अपच्छरसुंदर, गान करेरस रंग भरीडी जीत निशान बजाइ बिराजे. आनन्दघन सर्वंग घरीरी
।।आतम०11१।।
आतम011३11