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आतम अनुभव रीति वरीरी. आतम० ॥ मोर बनाए निजरूप निरूपम,
तिच्छन रुचिकर तेग धरीही ॥ आतम ||१||
टोप सन्नाह शूरको बानो, एक तारी चौरी पहिरीरी;
सत्ता थल में मोह विदारत,
ऐऐ सूरिजन मुह निसरीरी
केवल कमला अपच्छरसुंदर, गान करेरस रंग भरीरी; जीत निशान बजाइ बिराजे,
आनन्दघन सर्वंग धरीरी
॥ आतम० ॥२॥
॥ आतम० ||3||