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* जीव द्रव्य का कथन
जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो । भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो बिस्ससोढगई ॥ २ ॥
जीवः उपयोगमयः अमूर्तिः कर्ता स्वदेहपरिमाणः । भोक्ता संसाररथः सिद्धः सः विस्रसा ऊर्ध्वगतिः ॥ २ ॥
सुनो ! जीव उपयोग-मयी है, तथा अमूर्तिक कहलाता,
स्व-तन- वराबर प्रमाणंवाला, कंर्त्ता-भोक्ता है भाता । ऊर्ध्व-गमनका स्वभाववाला, सिद्ध तथा है अविकारी, स्वभाव के वश, विभाव के वश, कसा कर्म से संसारी ॥ २ ॥
[सो] ते (छ) [जीवो] कुठे छे दिव्य भने भावप्राथी) [उवओगमओं] (पयोगमय छे [अमुत्ति] अमूर्ति छे, [कत्ता ] [ छे: [सदेहपरिमाणो] भोतानां शरीरप्रभाश रहेवावानी छे, [भोत्ता ] लोडता छे; [ संसारत्यो] संसारमा रहेवावाणी छे [सिद्धो] [सद्ध छे; [विस्तसा] स्वभावथी [उड्ढगई] अर्ध्वगमन उरवावाणी छे.
जो जीता है, उपयोगमय है, अमूर्तिक है, कर्त्ता है, अपने शरीर के बराबर है, भोक्ता है, संसारमें स्थित है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊर्ध्वगमन करनेवाला है, वह जीव है ॥ २ ॥
Jiva is characterised by upayoga1, is formless and an agent, has the same extent as its own body, is the enjoyed (of the fauits of Karma), exists in samsar, is Siddha and has a characteristic upward motion.
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1. Menifestation of conciousness. 2. doer. 3. accomplished liberated souls.
* जीव का लक्षण
तिक्काले चपाणा इंदियबलमाउआणपाणो य । यवहारा सो जीवो णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स ॥ ३ ॥
त्रिकाले चतुः प्राणाः इन्द्रियं बलं आयुः आनप्राणः च । व्यवहारात् सः जीवः निश्चयनयतस्तु चेतना यस्य || ३ || आयुश्वास औ बल इन्द्रिय यूँ, चार-प्राण को धार रहा, विगत- अनागत- आगत में यह, जीव रहा व्यवहार रहा । किन्तु जीव का सदा-सदा से, मात्र चेतना श्वास रहा, निश्चय नय का कथन यही है "यह हम को" विश्वास रहा || ३ || - दिला हमें विश्वास रहा ||
[ववहारा] व्यवहार नयथी [जस्स] २ [तिक्काले] त्रशेय अणमां [इंदियबलमाउ] ईन्द्रिय, जाग, खायु [आणपाणो य] अने श्वासोच्छ्वास [चदुपाणा] मे थार प्राप्त होय छे, [दु] भने [णिच्छयणयदो] निश्वयनयधी [जस्स] ४ [चेदणा] येतना होय छे [सो] ते [जीवो] व छे.
व्यवहार नय से तीनकाल में इन्द्रिय, बल, आयु और श्वास निःश्वास इन चारों प्राणों को जो धारण करता है, वह जीव है, और निश्चयनय से जिसके चेतना है, वही जीव है।
According to Vyavahara Naya1, that is called Jiva, which is possessed of four Pranas viz., Indriya (the senses), Bal (force), Ayu (life) ard Ana-Pranal (respiration) in the three periods of time ( viz., the present, the past and the future), and according to Nischaya Naya that which has consciousness is called Jiva.
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1. Ordinary point of view. 2. Real point of view.