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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा ते पडावेला धनमांथी एक भाग राजा लई ले छे, बीजो भाग मंत्रीने मळे छे. त्रीजो भाग नगरशेठने मळे छे, चोथो भाग कोटवाळने मळे छे, पांचमो भाग पुरोहित ले छे अने तेनो छट्ठो भाग मारी माता (अक्का)ने मळे छे. काराण के ते तेओने सर्व प्रकारनी बुद्धि आपनारी छे. हवे तमारे स्त्रीनो वेश पहेरवो. पछी आपणे बंने मारी माता पासे जईए. त्यां रह्या छतां तमे मारी माताना उत्तर सांभळशो." पछी रत्नचूडे स्त्रीनो वेश पहेर्यो. वेश्या रणघंटा तेनी साथे रात्रे पोतानी माताना घरमां गई. ते स्त्रीवेष धारी रत्नचूडने देखी यमघंटा बोली-"पुत्री, आ बाळा कोण छे?" रणघंटा बोली, "माता, आ बाळा रूपवती नामे श्रीदत्त श्रेष्ठीनी पुत्री छे, ते मारी सखी छे. ए मने अनेकवार मळे छे. आजे ते मने दिवसे मळी न हती, तेथी अत्यारे रात्रे मळवाने आवी छे. तेणीने लईने हुं तमारी पासे आवी छं." आ वखते जेमणे कपट करी रत्नचूडनुं सर्व करीया| लई ली, हतुं. ते पेला चार धूर्त वणिक यमघंटाने घेर आव्या. तेमने उत्तम आसन उपर बेसाडी यमघंटाए पूछ्युं, "हे वणिको, मारा सांभळवामां आव्युं छे के कोई विदेशी वहाणवटी वेपारी अहीं आव्यो छे?" तेओए उत्तर आप्यो, "हा, आव्यो छे." यमघंटा पुनः बोली, "तो तेनाथी तमोने लाभ थयो के हवे थवानो छे? ते कही आपो." तेओ बोल्या, हजु लाभ थयो नथी." वेश्याए कडूं, "शी रीते?" पछी तेओए पोतानुं सर्व कपटचरित्र कही संभळाव्यु. ते सांभळी यमघंटा बोली, एथी तो तमोने अवश्य हानी थशे." तेओए पूछ्युं, "शी रीते हानि थशे?" यमघंटा बोली, "ते गुप्त वात अत्यारे रात्रे न कहेवाय. कडुं छे के, दिवसे छुपी वात बराबर तपासीने बोलवी अने रात्रे तो बोलवी ज नहीं. कारण के महान धूर्तलोको रात्रे फर्या करे छे. ते विषे वडना वृक्ष नीचे रहेला एक वररुचि नामना माणसने वीती हती." तथापि ते धूतॊए अति आग्रह कर्यो, एटले यमघंटा चोतरफ जोईने बोली, "तमोए इच्छित वस्तुओथी ते मुसाफरनुं वहाण पुरी देवा कबूल कयुं छे, तेथी तमोने मोटी हानि थशे." ते धूर्त बोल्या, "अमारा घरमा घणी खोटी वस्तुओ छे. तेनाथी तेना कहेवा प्रमाणे तेनुं वहाण अमो पुरुं करी दईशुं." बुद्धिवाळी यमघंटा बोली, "जो ते माणस मच्छरना अस्थिथी पोता वहाण पुरवायूँ कहेशे, तो तमे शुं करशो?" तेओ बोल्या, "तेनामां एवी बुद्धि क्यांथी आवशे? कारण के, ते हजु बाळक छे. लोकमां वृद्ध माणसोने बुद्धि होय छे. कडुं छे के, "एक वृद्ध माणस जेटलं जाणे छे. तेटलुं कोटी युवानो पण जाणता नथी. कदि कोई राजाने लात मारे, तो पण ते माणस वृद्ध वाक्यथी पूजाय छे" अक्का यमघंटा फरी श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 54
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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