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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा " गधेडा तथा ऊंटनी सवारी करी दक्षिण दिशामां जवानुं देखाय, तो मृत्यु थाय छे. जो स्वप्नमां शरीरे तेल चोळवानुं जोवामां आवे तो रोग थाय छे अने जो शींगडावाळा अने दाढावाळा प्राणीओ उपद्रव करता देखाय, तो राजकुल तरफथी भय उत्पन्न थाय छे. जे माणस स्वप्नमां पीळा वस्त्रने धारण करनारी अने पीळा चंदनना लेपवाळी स्त्रीने आलिंगन करे तो ते माणसने कोई हत्या लागे छे. । । ६०० ।। जे माणसने स्वप्नमां काळा तथा राता वस्त्रने धारण करनारी अने काळा तथा राता चंदनना लेपवाळी स्त्री आलिंगन करे, ते माणसनुं मृत्यु थाय छे. जे स्वप्नमां श्वेत वस्त्र तथा श्वेत (पुष्पनी) मालाने धारण करनारी स्त्रीने आलिंगन करे तेने लक्ष्मी प्राप्त थाय छे, जो स्वप्नमां विशेष भागे धोळो सर्प अथवा बीजी जातनो सर्प करडे; तेमज जळो के वींछी करडे तो, ते मनुष्यने विजय तथा द्रव्यनो लाभ थाय छे. जे शुभ आशयवाळो पुरुष स्वप्नामां कुकडी, घोडी के क्रोंचपक्षीनी मादाने जुवे ते पुरुषने घेर कन्यानी उत्पत्ति थाय अथवा तेने प्रिय स्त्री मळे छे. जो रोगी माणस स्वप्नमां चंद्र के सूर्यनुं मंडळ जुवे तो तेना रोगनी शांति थई जाय छे अने ते नीरोगी थई लक्ष्मीनो स्वामी बने छे. देवताओ, पितृओ, गायो, राजाओ अने सारा त्यागी पुरुषो स्वप्नमां आवीने जे कहे छे, ते प्रमाणे थाय छे. जे माणसने स्वप्नामां दहींनो लाभ थाय, तो तेनामां दया उत्पन्न थाय छे, घीनो लाभ थवाथी जय थाय छे, जो स्वप्नामां घीनुं दान करे तो क्लेश उत्पन्न थाय छे अने दहीँनुं भक्षण करे, तो यश वधे छे. जे माणस स्वप्नामां दूध, मदिरा अने रुधिरनुं पान करे, तो तेने द्रव्यनो संचय थाय छे अने जो सूर्यनुं दर्शन करे, तो अवश्य विजयी थाय छे. जे माणस स्वप्नामां विकराळ, विकट अने मुंड एवा काळा पुरुषने जुवे अथवा पीळा नग्नपुरुषने हसतो जुवे, ते माणसनुं मृत्यु थाय छे. जे स्वप्नामां पोतानुं आसन, वस्त्र, घर अने शरीरने अग्निथी बळतुं जुवे, ते माणसने सर्वने संमत एवी लक्ष्मी प्राप्त थाय छे. स्वप्नामां कपास, भस्म, छारा अने अस्थि सिवायनी बधी धोळी वस्तुओ शुभ समजवी अने बळद, अश्व, हाथी, देव अने ऋषि सिवायनी बधी काळी वस्तुओ अशुभ समजवी. आ प्रमाणे कही ते स्वप्नशास्त्रानो वेत्ता बोलतो बंध थयो एटले रत्नाकर श्रेष्ठी बोल्यो, "हे विद्वान्, मारी स्त्री स्वप्नामां रत्नोनो राशि जोयो छे, तेनुं फळ कहो.” ते पुनः बोल्यो, "हे श्रेष्ठी, तेनुं फळ सांभळो. हे महाशय, शास्त्रमां बधां मळीने बोंतेर स्वप्नो कहेलां छे. तेओमां बेंताळीश स्वप्नो में कह्यां अने त्रीस महास्वप्नो छे. एम शास्त्रवेत्ताओ कहे छे. तेओमां तीर्थंकर तथा चक्रवर्तीनी माता श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 45
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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