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________________ सुबुद्धिनी अवांतर कथा शत्रुओनी केम उपेक्षा करो छो? अथवा तेनुं कारण मारा जाणवामां एवं आव्युं छे के तमे मारेला अंतरना छ शत्रुओना तेओ किंकरो छे. किंकररूप रांकडा जाणी आप समर्थ तेमने हणता नथी अने उपेक्षा ज करो छो. जेओ तमारा अचिंत्य स्वरूपने जाणनारा छे, तेओ तमने भले वीतराग कहे, पण आ विश्वने रंजन करवाना कारणने लईने हुं तो तमने सराग-रागवाळा कहुं छं. तमोए पूर्वे 2 योगोनो निरोध करीने शुं योगनो अंगीकार कर्यो छे? जेथी राय (धन) ने कल्याण सहित (वार्षिक दानमां सफळ) करीने कल्याण (मोक्ष) ने केम भजो छो? हे जगत्प्रभु ! तमे पुण्यवान् प्राणीओने पुण्य आपनारा छो अने पापी प्राणीओना पापने हरनारा छो, तो हुं तमारी प्रजारूप छं. तेनी तरफ तमे मध्यस्थभावे केम रहो छे? तमे 'वर संवरना दानथी बे प्रकारे सविता - सूर्यरूप छो, तो तमे मने तमारा गोभरथी विदेहक्षेत्र बतावो . केटलाएक तमोने इन - स्वामी कहे छे, भले कहो पण तमे बे प्रकारे जयशील छो, तो आ मारी स्तुतिथी तमे मारा मोहने हरी ल्यो. हे परमेष्ठि, तमे त्रिकालज्ञानी छो, छतां आ भावी एवी प्रजाने केम जाणता नथी? केमके हुं तो उभो ज थइ रह्यो छं अने तमे पोते हंसगतिए विचरी रह्या छो. आ विश्वनी अंदर 'विबुधो सुमनवडे तमारी पूजा करे छे, तेओमां तमे एकने सिद्धि आपो छो. आ प्रमाणे श्री सुबुद्धि मंत्रीए कहेलुं श्री जिनभगवाननुं प्रशस्त स्तवन अने बीजाओने परलोकमां समृद्धि आपो छो. ते शुं? हुं तमारी उपर जे राग राखुं छं, ते जो तमने पसंद न होय तो मने तमे समता आपो के जेथी हुं तमारी तुल्यता धारण करूं. समस्तबुद्धिना स्थानरूप आ साधारण जिनस्तवन जे भणे छे, तेने 1. रंजन करवुं ते रागनो धर्म छे. तो तमे सर्व विश्वने तमारा प्रभावथी रंजन - राजी करो छो, तो तमे वीतराग-रागरहित केम कहेवाओ? 2. मन, वचन अने कायनो योग. 3. मध्यस्थभावे-तटस्थपणे सविता - सूर्यवर- श्रेष्ठ एवा संवर - प्रकाशनुं दान करी अथवा श्रेष्ठ वरदान आपी पोताना गोभर - किरणोना समूहथी क्षेत्रने बतावे छे. प्रभु वर - श्रेष्ट संवरना दाने पोताना गोभर - वाणीना समूहथी विदेह - देहरहित एवा क्षेत्र परमपदने दर्शावे छे. 4. जे परमेष्ठि - ब्रह्मा होय ते भविष्यनी प्रजाने जाणी शके अने हंसना वाहनथी विचरी शके. जिनपक्षे भविष्यना जन्मने जाणी शके छे अने हंस- आत्मावडे ते विचरे छे. 5. विबुधोदेवताओ सुमन - पुष्पोथी पूजा करे छे अने विबुध - विद्वानो सुमन - सारा मनथी ध्यान करे छे. अर्थात् विबुधो - ज्ञाततत्त्व सुविवेकीजनो तेमज देवताओ सुमन प्रसन्न मन तथा पुष्प पुष्पादिक उत्तम द्रव्योवडे प्रभुपूजा करनारा देव मानवादिक प्रबळ पुन्य योगे भवान्तरमां भारे समृद्धि मेळवी शके छे देव मनुष्यगति संबधी विशाळ भोग सामग्रीनो जोग पामी शके छे; परंतु सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित्ररूप रत्नत्रयीने प्रसन्नचित्तथी आराधी जे भव्यजनो भावपूजा उपरांत प्रतिपत्ति पूजाना लाभने पामे छे ते महानुभावो अंते सिद्धबुद्ध थइ मुक्त थाय छे-: - सकळ कर्मनो अंत करी सिद्धिवधूने वरे छे. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 17
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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