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________________ सुबुद्धिनी अवांतर कथा बलात्कारे खेंची लउं छु, ते छतां मारा राज्यनी वृद्धि-आबादि थाय छे, ते उपरथी सिद्ध थाय छे के, पाप करवाथी सारुं थाय छे." राजाना आवां वचनो सांभळी सुबुद्धि मंत्रीए कडं, "महाराजा, कदि सूर्य पश्चिममां उगे अने अग्नि शीतळ थाय, तो पण पापथी सारं थाय नहिं. तमे जीवहिंसा वगेरे करो छो, ते छतां तमारा राज्यनी जे आबादि थाय छे, ते तमारा पूर्वना पापानुबंधीपुण्यना प्रभावथी ज थाय छे, पुण्यानुबंधी पुण्य अने पापानुबंधी पुण्य ए उभय प्रकारे राज्यनी प्राप्ति थाय छे, पण ते बंने प्रकारे प्राप्त थयेलुं राज्य छेवटे नरकने आपनाएं थई पडे छे.' चोर कदि चोरी करवाथी घणुं धन प्राप्त करे, ते तेनुं फल सारुं देखाय, पण तेमांथी तेनुं माधुं पण कपाय." राजाए प्रश्न कर्यो, "मंत्रिन्, तमारा घरमां जे सदा संपत्ति रहे छे, ते कोना प्रसादथी रहे छे ते कहो." मंत्रीए उत्तर आप्यो. "ते धर्मना प्रसादथी" तत्काल राजा बोल्यो, अरे. ते संपत्ति मारी आपेली छे, छतां तुं धर्मे आपेली कहे छे, तो तुं हवे ते मारी संपत्ति मने आपीने अहिंथी सत्वर बीजे स्थळे चाल्यो जा. मारा देशमां तारे न रहेवं, कंइ करीयाj न ज खरीदवं, कोइनी पण पासे याचना न करवी, फक्त धर्मथी ज लक्ष्मी पेदा करवी. हे उतम पुरुष, जो ते संपत्ति पापथी प्राप्त थयेली छे, एम कबूल कर, तो तुं सुखे रहे; एटलुं ज नहीं पण हुं तने हमणां ज उलटो बमणी संपत्ति अने मारु अर्ध राज्य आपु." राजाना आवां वचनो सांभळी मंत्री बोल्यो, 'राजन्, धनना लाभनी खातर हुं अन्य संबंधे असत्य बोलुं नहीं तो पछी आ मोटा धर्मनी बाबतमां असत्य केम बोलुं? देहवडे करेला ब्रह्महत्यादि पापोनी शुद्धि तीर्थे जवाथी अने तपस्याथी थइ शके छे, परंतु जे कुधर्म, अधर्म अने दुष्कर्मोने प्रतिपादन करवाथी थयेला वाचिक पापो छे, तेनी शुद्धि तो कोई रीते थती नथी. छद्मस्थ तीर्थंकरो पृथ्वी उपर कायिकीक्रिया करे छे, पण तेओ नियमित मौन धरीने रहे छे. तेथी जे कायिकदोष छे, ते 'शामक छे अने जे वाचिक दोष छे, ते प्राये करीने शामक नथी. लोकोमां पण कोइ वचन कहेवायुं होय ते पाछळथी चाल्या करे छे अने व्यापक थइ रहे छे. तो हे राजा, तमे मारुं सर्वस्व लइ ल्यो. पापथी मेळवेलुं ते द्रव्य शा कामनुं छे? हुं परदेशमा जइने धर्ममार्गे वर्त्ततां द्रव्य उपार्जन करीश." आ प्रमाणे कही मंत्री सुबुद्धि पोताना घर- सर्वस्व राजाने आपी, जिनभगवानने नमी अने पोताना कुटुंबने सारी शीखामण आपीने 1. पुण्यानुबंधि पुण्यथी मळेलुं राज्य नरकने आपनारं का ते लौकिक अपेक्षाए का छे. 'राजेश्वरी ते नरकेश्वरी' आ सूत्रनी अपेक्षाए. 2. वचन संबंधी. 3. [लाईट, माईक अने लेट्रीननो उपयोग करवो जोईए एवं कहेनाराओनी शी हालत थशे?] 4. शरीर संबंधी. 5. शमी-शांत थाय तेवू. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 15
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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