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________________ सम्यक्त्व उपर कुलध्वजनी कथा अने काम ए त्रिवर्गमां जेम धर्म श्रेष्ठ छे. तेम दर्शन श्रेष्ठ छे, तेथी कार्यने जाणनारा (कुशळ) पुरुषे हंमेशां ते दर्शननी अंदर चित्त जोडवुं ते दर्शनसम्यक्त्वने विद्वानो एक प्रकारे, बे प्रकारे त्रण प्रकारे, चार प्रकारे अने पांच प्रकारे जणावेलुं छे. एक प्रकारे ते सम्यक्त्व पवित्र तत्त्वरुचि नामे छे. द्रव्य अने भावथी, निश्चय अने व्यवहारथी अने उपदेश अने निसर्गथी एम बे प्रकारनुं सम्यक्त्व जिनागममां कहेलुं छे. कारक, रोचक अने दीपक तेम क्षायिक, क्षायोपशमिक अने औपशमिक- एम त्रण प्रकारे कहेलुं छे. औपशमिक, सास्वादन, क्षयोपशमिक अने क्षायिक एम चार प्रकारे कहेलुं छे. तेमां वेदक नाम वधारवाथी ते सम्यक्त्व पांच प्रकारनुं कहेवाय छे. ए सम्यक्त्वने पांच लक्षण, पांच भूषण अने पांच दूषणो कहेलां छे." गुरुनो आवो उपदेश सांभळी कुलध्वजे सर्वनी समक्ष रागद्वेषने निराकरण करनारुं सम्यक्त्व ग्रहण कयुं. ज्यारे तेणे सम्यक्त्व अंगीकार कयुं, त्यारे सुविचारी गुरु बोल्या - "भद्र! तारे हवे पछी ( आजथी मांडी) हंमेशां पंचपरमेष्ठीना स्वरूपनुं चिन्तवन करवुं, सुगुरुनी आराधना करवी, जीवदयामय धर्म पाळवो, सदा कषायोने छोडी देवा, उत्तम पुरुषोनो संग करवो, नित्य स्वदारा संतोष राखवो, कोईनो दोष ग्रहण करवो नहिं, नवतत्त्व उपर रुचि राखी अने साधुधर्म तरफ वृत्ति राखवी. ईत्यादि वर्त्तन करवाथी तारुं सर्व शुभ थशे." आवो उपदेश सांभळी कुलध्वज पोताने घेर जवा मार्गे चालतो थयो, वामां कोई बे स्त्रीओ परस्पर कलह करती जोई तेमने राजकुमारे कलह करवानुं कारण पूछ्युं, तेओमांथी एक बोली, "राजकुमार ! हुं लोहकारनी स्त्री ह्युं अने आ रथकारनी स्त्री छे. मारा मस्तक उपर पाणीनो मोटो घडो छे अने आ स्त्रीना मस्तक पर खाली घडो छे, छतां तेणे मने जवा माटे रस्तो आयो नहिं. मारा पतिनी कारीगरीना जेवुं ज्ञान सद्बुद्धिवाळा कया पुरुषमां छे?" ते सांभळी कुमार बोल्यो, 'तारा पतिमां कारीगरीनुं ज्ञान केतुं छे?" ते बोली, "मारो पति लोढानुं माछलुं बनावी तेने आकाशमां उछाळी समुद्रमांथी रत्नो अने मोतीओ आणी आपे छे, तेथी आ रथकारनी स्त्रीनी साथे मारी तुलना करवानी नथी." ते सांभळी पेली रथकारनी स्त्री बोली, "मारो पति लाकडानो अश्व बनावी आकाशमां फरे छे अने ते वडे छ मासमां बधी पृथ्वीने जोई पाछो पोताना नगरमां आवे छे, तेथी आ लोहकारनी स्त्रीना करतां हुं वधारे चढीयाती छं." पछी राजकुमार ते बंने स्त्रीओने लई राजानी पासे आव्यो. राजाए ते बंनेनो वृत्तांत पूछयो एटले कुमारे ते सर्व कही संभळाव्यो. पछी राजाए तेमना स्वामी लोहकार अने रथकारने श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 338
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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