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बीजा व्रत उपर कमलशेठनी कथा सागरना कहेवा प्रमाणे बधुं त्यां जोवामां आव्यु. द्रव्यना नाशना भयथी व्यग्र थयेला अने हृदयमां परिताप पामता मूढ विमले तरत पोतानो माल गोपवी दीधो. अने तेणे पोताना पिता कमलने का के, "तमे साक्षी छो, तो तमारे हवे मारो पक्षपात करवो कारण के तमे मारा बाप छो." आ समये कमल स्थिर मन राखी मौन रह्यो. पछी विमल अने सागर बंने विवाद करता सत्वर बळात्कारे दरबारमा फरीयाद करवा गया. ते बनेए पोतानो वृत्तांत राजानी आगळ निवेदन कर्यो. ते सांभळी राजाए का के, "तमारो कोई साक्षी छे?" ते वखते सागर बोल्यो, "प्रभु, आ विमलनो पिता साक्षी छे." पछी राजाए कमलशेठने बोलावी पूछ्यु, एटले तेणे राजानी आगळ स्पष्ट रीते साचेसाचुं कही आप्यु के, "राजन्, सागर जीत्यो छे अने मारो पुत्र हार्यो छे. हुं द्रव्यना लोभथी खोटुं नहिं बोलुं." राजा संतुष्ट थयो अने तेणे कमलशेठने बहु मान आप्यु, तत्काळ देवताओए आकाशमांथी पुष्पवृष्टि करी. पछी राजाए विमलने पोताना देशमांथी काढी मूक्यो अने हर्षथी सागरने पूछ्युं के, "तें ए हकीकत शी रीते जाणी?" सागर बोल्यो, "गंधथी अने आंबाना पडवाथी में आंबानुं गाडं जाण्युं अने शौच-आचारथी तेना हांकनारने ब्राह्मण जाण्यो. ज्यां हितनी इच्छा करनार हांकनारे पग धोयेला, त्यां घणी माखीओ भेगी थयेली जोई ते उपरथी मे तेने कोढीओ चिंतव्यो. पृथ्वी उपर वारंवार पडवाथी तेना एक बळदने गळीयो अने रेती उपर पगनी वांकी रेखाओ जोवाथी बीजा बळदने लुलो जाण्यो. ते हांकनार ब्राह्मणे आंबाना फलोने ढांकवाने माटे छेदेलां तेना पत्रो अने नीरस फल काढी नाखेला ते खावा उपरथी में तेनी पाछळ चालनारने चंडाळ जाणी लीधो हतो. कांटावाला वृक्षनी उपर राता तंतुओ वळगेला ते उपरथी पाछळ आवनारी स्त्री धारी हती अने फरीने जोवाथी ते रूष्ट थयेली जाणवामां आवी. "कोई मने मनावाने आवे छे के नहीं," एम जोवाने माटे ते पाछी डोक करी जोती हती, एम तेनां पगला उपरथी जाण्युं अने ते देहचिंता पीशाब करी हाथनो टेको लईने उभी थई, ते उपरथी शरीरना भारथी मंद थयेली ते गर्भिणी छे एम जाण्युं तेणीनो जमणो हाथ जोरथी जमीनमां पेशी गयो, ते उपरथी तेना गर्भमां पुत्र छे अने दुःखथी तेनो प्रसव हमणां ज थशे एम जाणी लीधुं." सागरनां आ वचनो सांभळी राजा घणो खुशी थयो अने तरत ज तेने पोतानो मुख्य मंत्री बनाव्यो. जेओ "धीधनानां हि सर्वत्र, पूज्यते जायते जने।।१२०।।" बुद्धिरूपी धनवाळा छे, तेओनी लोकोमा सर्व ठेकाणे पूजा प्रतिष्ठा थाय छे. राजाए अने अन्य जनोए सत्यभाषणने लईने कमलशेठने मान आप्यु 296
श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग