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श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना तमारी आज्ञाथी ज सफळ थाय छे. तमारा वचन पाळवाथी तमारी भावपूजा थाय छे, ते साधुने प्रशंसनीय छे अने गृहस्थ श्रावकोने तो स्थापना-प्रभुनी पूजा, पुष्प वगेरेथी प्रशंसनीय छे. आ प्रमाणे कही ते अरिमर्दन इंद्रनी पछवाडे पोताने योग्य स्थाने बेठो. _ पछी जगद्गुरु प्रभु उत्तम अमृतने झरनारी वाणीथी आ प्रमाणे बोल्या"हे भव्यो, आ संसारमा भमता एवा तमोए आ उच्च भवमां द्रव्यादिक उत्तम सामग्री कंई मेळवी नथी? प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान, भरतक्षेत्र, मध्यकाळ अने शुभभाव तमे प्राप्त कर्यो छे, तेथी प्रमादनो त्याग करीने तमे मोक्षनो सन्मार्ग सेवो. ते सिवाय प्राप्त करेलुं सर्व निष्फळ थई जाय छे. ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए ज मोक्षमार्ग कहेवाय छे. जो ते सम्यग् न होय, तो ते मोक्षनो मार्ग कहेवातो नथी. ।।११०० ।। दश पूर्वधारी वगेरेए, प्रत्येक बुद्धोए अने गणधरोए जे करेलु (रचेखें-गुंथेलु) ते सम्यक् श्रुत कहेवाय छे. ते सूत्रमाथी जाणी लेवू. कदाचित् कोई स्थाने श्रोता अने वक्ता वगेरेनी अपेक्षाए तेमां अर्थथी विपर्यास-फेरफार थई जाय छे, तेथी जो श्रोता अने वक्ता बंने सत्य होय, तो ते सम्यक् श्रुत कहेवाय छे. अन्यथा पोते करेलामां पण तेनो विपर्यास थवानो संभव छे. निमित्त वगेरेने लईने ते कयु होय अने श्रुत सांभन्युं होय, पण जो ते विपरीत थई जाय, तो तेनाथी सुखने आपनारो मोक्ष थतो नथी; परंतु जे तत्त्वना विचार साथे श्रुत सांभन्युं होय तेवा श्रुतथी सिद्धि थाय छे, तेथी तमारे श्रुतनो आश्रय करवो. जे तेवा श्रुतना एक पण पदनी उपर श्रद्धा राखतो नथी, ते आ लोकमां मिथ्यात्वी जाणवो, तेथी तेवा श्रुतना वचन उपर तमारे श्रद्धा राखवी. जे पुरुष ते श्रुतनो विपर्यास जाणतां छतां पण जो ते प्रमाणे करे छे, तो ते अवश्य अनंत संसारी थाय छे, तेथी मनुष्योए रागद्वेषमय ग्रंथिनो भेद करवो के जेथी सम्यक्त्व प्राप्त थाय. जो तेनो विपर्यास थाय, तो सम्यक्त्व प्राप्त थतुं नथी. ज्यारे जे जीवने आयुष्य सिवायना सात कर्मो उत्कृष्ट स्थितिवाळा होय छे, त्यारे ते जीवने कदि पण ग्रंथिभेद थतो नथी. ज्यारे ए कर्मो कोटा-कोटी सागरोपमथी किंचिउण स्थितिना होय छे, त्यारे जीवो चार सामायिक प्राप्त करे छे. जे मनुष्य पोताना हृदयमां एक अंतर्मुहूर्त्तमात्र सम्यक्त्वने धारण करे छे, तेनो संसार अर्धपुद्गल परावर्त प्रमाण थई जाय छे. बीजा सम्यक्त्वथी पण मनुष्योने देवतानी गति प्राप्त थाय छे. जो ते सम्यक्त्व उत्कृष्ट क्षायिक होय, तो तेने ते ज भवे सिद्धि थाय छे. जो ते पूर्वबद्धायुवाळो होय, तो
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श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग