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श्री विमलनाथ प्रभुनं च्यवन तथा जन्म तमो तो ते त्रणे ज्ञानोने अहिं साथे लाव्या छो; तोपण अमो तेनी ईर्ष्या करता नथी. परंतु अमोए हृदयमां चिंतव्यु छे के प्रभवो यच्च कुर्वन्ति तत्सर्वं ज्ञाप्यमेव वै ।। "जे प्रभु-समर्थ पुरुषो करे, ते बधुं ज्ञाप्य-समजवा लायक ज छे." ए वात तो एक तरफ रही, परंतु तमोए अमारा आसनोने हमणां चलायमान काँ, ते केवी रीते? ते उपरथी तमारुं बल वचनथी कही शकाय नहीं तेवू छ; अर्थात् जो तमाएं बल वचनथी कही शकाय नहीं तेवू न होय; तो तमे अमारा आसनोने चलायमान केम करी शको? हे सुंदर स्वरवाळा प्रभु, तो पण तमे पुरुष रूपे थई बाहर प्रगट थाओ. सम्यग्दृष्टिना बळथी अमोए तमोने ओळखी लीधा छे. "हे मोक्षदायक प्रभु, ज्यां सुधी तमो अमने केवळज्ञान आपशो नहि, त्यां सुधी अमो तमाहं पडय़ छोडीशुं नहि. जेओ न्यायमा प्रवृत्ति करनारा छे, तेओ तमारा योग्य सेवक जेवा छे, तेथी तेओनी वाणीनी वृत्ति आ पृथ्वीमां एवी ज होय छे. आ प्रमाणे सर्व आरंभने छोडनारा श्रीजगत्पतिने विज्ञप्ति करी, पछी ते चतुरइंद्रोए श्यामादेवीने प्रणाम करी आ प्रमाणे उंचे स्वरे कह्यु,-"शुभ वचन बोलनारा अने गर्भमां रत्नने धारण करनारा हे देवी, अमो तमने नमस्कार करीए छीए. कारण के रोहणगिरि रत्नगर्भ होवाथी सर्व पर्वतोमा मान्य गणाय छे. जेम लोकोमा सूर्यने जन्म आपनारी पूर्वदिशा पूज्यताने पामी छे, कल्पद्रुमवडे अतुल्य एवी भूमि जेम देवताओने सेववा योग्य थई छे अने जेना गर्भमां मुकता (मोती) छे एवी छीपने जेम लोको यत्नथी राखे छे, तेम तमे गर्भना प्रभावथी लोकमां सर्वोत्तम थयेला छो. हे देवी, तमोने आवेला पहेला गजेंद्रना स्वप्नथी तमारा पुत्र 'राजमान्य, सदा उत्तम, भद्रजाति अने दानकर थशे. बीजा वृषभना स्वप्नथी तमारा पुत्र ‘मार्गगामी क्षमाभारनो उद्धार करनारा, अतुलबळथी उज्ज्वळ अने शुभदर्शन वाळा थशे. त्रीजा सिंहना स्वप्ननादर्शनथी तमारा पुत्र अनेक पराजिने जीतनार, 'वनसेवी, साहसमां अग्रणी अने °सहाय रहित कार्यने करनारा थशे. 1. गजेंद्र राजाओने जेम मान्य छे, तेम तमारा पुत्र सर्वराजाओने मान्य थशे. 2. गजेंद्र भद्र
जाति-उच्च जाति होय छे. तेम तमारा पुत्र भद्रिकजातिना थशे. 3. गजेंद्र दानमदने करनार होय छे. तेम तमारा पुत्र दानकर-दान आपनारा थशे. 4. वृषभ बळद मार्गयायी-मार्गे चालनार होय छे. तेम तमारा पुत्र मार्गानुसारी थशे. 5. बळद पक्षे क्षमा-पृथ्वीना भारने वहन करनार अर्थात् उपाडनार अने प्रभु पक्षे क्षमा गुणना भारथी प्राणीओनो उद्धार करनार. 6. सिंह पक्षे अनेक गजेंद्रोनी राज-श्रेणीने जीतनारा प्रभु पक्षे अनेक परशत्रुओनी आजि-रण भूमिमां विजय मेळवनार. 7. सिंह पक्षे वन-जंगलमां वास करनार. प्रभु पक्षे पण जंगलमां वास करनार. 8. अग्रणी-मुख्य. 9. कोईनी सहाय वगर कार्य साधनार. 222
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग