SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री विमलनाथ प्रभुना पूर्वभव- वृत्तांत एवं तीर्थंकर नामकर्म तेमणे उपार्जन कयु. पछी विधिपूर्वक विशेष संलेखना करी आयुष्यने अंत समये तेमणे आ प्रमाणे आराधना करी (चतुः शरण) - __ "जनसमूहे स्तवेला अने शुक्ल ध्यानरूपी धनवाळा अतीत, अनागत अने वर्तमान एवा प्रधान जिन भगवंतोनुं मारे शरण होजो. सर्वजनोए मानेला, योगीओए नमेला, ध्यानथी गम्य अने गुणोथी रमणीय एवा सनातन प्रसिद्ध सिद्ध भगवंतोनुं मारे शरण होजो. जेओ वाणीने नियंत्रणमा राखनारा अने संयमने पाळनारा अनेक प्रकारने नियमधारी मुनिओ छे, तेमनुं मारे शरण होजो. कल्याणना हेतुरूप, दयामय, नयमय अने श्री जिनभगवाने कहेलो प्रख्यात धर्म अत्यारे मारे शरण रूप होजो. दुष्कृत्य गर्हा - जे काल वगेरे आठ अतिचारो ज्ञानमा लाग्या होय ते सर्वमां मन, वचन अने कायाथी मारूं मिथ्या दुष्कृत्य होजो. दर्शनमा शंका वगेरे आठ अतिचारो लाग्या होय, ते सर्वमां मन, वचन अने कायाथी मारु मिथ्या दुष्कृत होजो. चारित्रमा प्रवचन माताने अनुसरतां जे आठ अतिचारो लाग्या होय ते सर्वमां मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. पृथ्वी वगेरे जे एकेंद्रिय जीवो माराथी हणाया होय, ते सर्वमां मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. कृमि, शंख, छीप वगेरे जे बे इंद्रिय जीवो माराथी हणाया होय, ते सर्वनं मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. लीख, मांकड अने जू वगेरे जे तेईद्रिय जीवो माराथी हणाया होय, ते सर्वनुं मन, वचन अने कायाथी मारूं मिथ्या दुष्कृत होजो. माखी, भमरा अने पतंग वगेरे जे चार इंद्रियवाळा जीवो माराथी हणाया होय, ते सर्व- मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. जळ, स्थळ अने आकाशचारी जे पंचेंद्रिय जीवो माराथी हणाया होय, ते सर्व- मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. ।।१२००।। क्रोध, लोभ, भय अने हास्यने वश थई माराथी जे मिथ्या वाक्य बोलायुं होय, ते सर्वमन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. कोटी भवोमां कपट करीने जे में पारकुं घणुं धन लीधुं होय, ते सर्व- मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. अनंत भवोमां तिर्यंच, देव अने मनुष्य संबंधी जे में मैथुन सेव्यु होय, ते सर्वनुं मन, वचन अने कायाथी मारुं मिथ्या दुष्कृत होजो. में पूर्वे प्रत्येक भवमां धन, धान्य अने सुवर्ण वगेरेमां ममत्व कयुं होय, ते सर्वनुं मन, वचन श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 214
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy