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भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा ते 'दोषोदयमां प्रकाशने पामती नथी, पूर्वे ललाटना अक्षर (विधि) योगथी हुँ वर्णिनी वर्णवाळी कहेवाती हती, ते अत्यारे तेना विपरीतपणाथी अवर्णनीयपणाने प्राप्त थई छ. विवेकी पुरुषे मत्स्यनी पासेथी तेनुं एक स्वाभाविक शिक्षण लेवा योग्य छे के जे मत्सय पोतानुं पाणी गया पछी जीवितनो त्याग करी दे छे. अर्थात् माणसे पोतानुं पाणी उतरी गया पछी जीवq न जोईए. 'आ स्त्री अकर्मी छे' एम मने लोको कहेशे. कारण के ए स्वीना हस्तना संयोगथी तेणीनो पति घणो दुःखी थई गयो. वळी विरहरूपी अग्नि नारकीनां उष्ण प्रदेशना जेवो कहेलो छे. तेनी आगळ चितानो अग्नि तो साक्षात् शीतळ अने सुखकारी छे. माटे ते मारा अवर्णवादने अने विरहना दुःखने छेदवानुं हुं चिताग्निमां प्रवेश करीश, हुं लघुताने सहन करीश नहि." आ प्रमाणे हृदयमां चिंतवी तेणीए पोतानी माता पासे ते विचार जणाव्यो. माताए कह्यु. जेवी तारी बुद्धि थई छे तेवी ज मारी बुद्धि छे. ते विचार राजाए अने राजवर्गे पण अंगीकार कर्यो. ते जोई नगरना सर्व लोकोए पण ते प्रमाणे कबूल कयु. लोकमां कहेवत छे के, "आ विश्वमा सर्व विद्वानोनी एज बुद्धि थाय छे," ते कहेवत आ नगरमां सत्य थई. पछी लोकोए तरत ज पोतपोतानी चिता करवा माटे ठेकाणे-ठेकाणे पृथ्वीना अखंड खंडो खडंगना आकर्षणथी जदा-जुदा कर्या. शत्रु अने मित्र सहित सर्व जनसमूहे सुवर्णना मूल्यवाळा उत्तम काष्टोथी त्यां चिताओ खडकी. पछी बधा लोको घासना पुलामां अग्निने नाखी मुखना पवनथी आदरपूर्वक तेने सळगाववा लाग्या, परंतु ते शोकातुर एवा सर्वेना अग्निमांथी ज्वाला प्रगटी नहिं तेथी राजा वगेरे सर्वे 'आनुं शं कारण हशे' एम विचारमां पडी गया, तेवामां राजकुमारी कलावतीए दिशाओमां पोतानी दृष्टि नांखी, तेवामां कायोत्सर्गे रहेला एक शांत मुनि तेणीना जोवामां आव्या. तरत ज तेणीए चिंतव्यु के "आ मुनिना प्रभावथी ज अग्नि सळगतो नहीं होय. माटे ए मुनिने नमस्कार करी हुं मारा जन्मने सफळ करूं." आ प्रमाणे चिंतवी राजपुत्री राजा वगेरे लोकोनी साथे त्यां गई अने मुनिने नमन करी अवसरने योग्य एवं वचन बोली ।।४३०॥ "हे दयानिधे, तमे तमारा तपथी आ बळता अग्निनो रोध शा माटे कर्यो छे? हाल दुःखी थयेला आ सर्व 1. दोषोदय-दोषनो उदय पक्षे दोषा-रात्रिनो उदय. कहेवानो आशय एवो छ के, पद्मिनी(लक्ष्मी) पंकजा-(पापरूप) कादवमांथी पेदा थयेली छे, पण ते धर्मरूप सूर्यना किरणना संगी शुभ दिवसे प्रकाश पामे छे, पण दोषोदयमां-पापरूप रात्रिना उदयमां प्रकाशने पामती नी. 2. अर्थात् अमे पण तारी साथे बळवा तैयार छीए.
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श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग