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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा रहेलो छे. हुं जीवतां तने सर्वार्थनी सिद्धि आपीश अने मृत्यु पामतां विशेष पणे सदा अमृत-मोक्ष आपीश. आ मारुं वचन तारे सत्य मानवं. तुं मारी पासे सुखे रहे अने मन वांछित अर्थ मागी ले. कारण के कल्पवृक्ष वगेरे तो मारे घेर काम करनारा सेवक रूपे छे. जो तारा मनने राज्य गमतुं होय अथवा वासुदेव पद, चक्रवर्तिपणुं के इंद्रपणुं गमतुं होय तो ते कहे तने जे ईष्ट होय ते हुं तने आपुं." आ प्रमाणे प्रणाममित्र लोकनाथना वचनरूप अमृतनुं पान करी ताप रहित थयेलो ते मंत्री बोल्यो के, "ए सर्वमां राजा उग्रशासननी कोईपण आज्ञा प्रवर्ते छे?"तेणे का, "ज्यारे हुं प्रमादी थाउं छु, त्यारे ते मारी सम्यग् दृष्टिने छेतरी माणसने पोतानो सेवक बनावी दे छे." शुद्धबुद्धि बोल्यो, "जो तेम होय तो अहिं सुख छतां पण हुं रहीश नहि, ज्यां ते उग्रशासन- नाम पण न होय तेवे ठेकाणे मने लई जाओ." लोकनाथे कडं, "फक्त एक स्थान सिवाय बीजे सर्व स्थाने कोई कोईवार तेनो भय तो छे." मंत्री बोल्यो, "हे प्रभु तेवा कोई प्रधान एवा महास्थानमां मने लई जाओ के, ज्यां हुं तमारा प्रसादथी निर्भय थईने रहूं." लोकनाथे कडं, "ते महास्थान निर्वृतिपुरी छे. त्यां मारी साथे चाल. हुं तने प्रशस्तपुरीनुं द्वार बतावं. परंतु तेना मार्गमां बळतो दावानळ आवे छे, तेमां जो तुं प्रवेश करीश तो पछी हुं तारो रक्षक थई शकीश नहि. तेनी आगळ एक पर्वत छे, ते विंध्याचलनी जेम वधतो जाय छे, जो त्यां तुं लांबो काळ रहीश तो पछी नगरीमा जई शकीश नहि. तेथी तारे जलदी ते उपरथी उतरी जवं. तेनी आगळ एक वांसनी जाळी छे, तेनो मार्ग आडो अवळो गुपिल (अ) सरळ छे, तेथी तारे ते क्षणमांज ओळंगवी. तेनी आगळ एक खाई आवे छे, ते खाई आगळ लघु छे अने पाछळथी मोटी छे. तेनी समीपे एक विप्र (मनोरथ भट्ट वसे) छे, ते कहे छे के, "आ खाईने भरीने आगळ चालो." परंतु तुं जो हितने ईच्छतो हो तो ते विप्रनुं वचन मान्या वगर तारे आगळ चालवं, नहीं तो तारा बधा जन्म चाल्या जशे, तो पण ते खाई पुराशे नहि. ते ठेकाणे तारे क्षुधा अने तृषानी पीडा सहन करवी पण त्यां रहेलां पक्वफलो खावा नहीं अने स्वादिष्ट जल पीयूँ नहि. कार्यने जाणनारा एवा तारे त्यां स्वादरहित अने नीरस एवां फल तथा जल लई सदा प्राणवृत्ति करवी. त्यां बावीस चोर रहेला छे, तेओथी यत्नवडे चेतता रहेवू, नहिं तो प्रथम मेळवेळु तारुं सर्वस्व ते ग्रहण करी लेशे. त्यां एक वाघ अने एक सिंह एम बे प्राणीओ छे, तेनाथी तारे सावधान अने शुभध्यान राखीने दूर रहेQ." लोकनाथना आ वचनो ते मंत्रीए कबूल कयाँ पछी तेने ते शुभ स्थानमा श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 154
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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