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________________ भावतत्त्व उपर चंद्रोदरनी कथा हृदयमां चिंतववा लागी के, "अहो! आ वननी अज्ञान एवी कुकडीने पण धन्य छे के जेणी आ संसाररूपी वृक्षनी सफळता करनारा पोताना जीवतां बच्चांओने सदा स्नेह भरेली दृष्टिथी हर्ष सहित जुवे छे. वळी जेणी पोताना बे चरणोवडे पृथ्वीने आदरथी उखेडी पाछळ अने पडखे रहेला ते बच्चाओने कण वगेरे खवडावे छे. अने हुं सौभाग्यनी श्रेणिथी युक्त छतां केवी मंदभाग्यवाळी के जे नेत्रोने आनंद आपनारा पुत्रने जोती नथी. हुं जुईना वृक्षनी जेम कुलीन छतां पण फळ (संतान) रहित छु अने ते जुई तो पुष्पवती थई राजाने भोगदायक छ अने हुं 'पुष्पवती छतां भोगदायक (पुत्रवती) थई शकती नथी. जेम राजहंसे सेवन करेली अने कादवमाथी थयेली पद्मिनी राजा-चंद्रनो प्रसाद प्राप्त करतां पण सुखथी मुखविकास करती नथी, तेम हुं राजारूपी हंसे सेवेली छु अने मारी उपर राजानो प्रसाद छे, छतां पण सुखथी मुखविकास करती नथी. पृथ्वी उपर श्याम एवी पण रात्रि राजा-चंद्रनो प्रसाद मेळवी निर्मळ थई जाय छे, परंतु ज्यारे तेज रात्रिने अंधकार प्राप्त थाय छे, त्यारे ते कोईवार कृष्णता-काळाशवाळी बनी जाय छे." आ प्रमाणे विचारी ते राणी जयावळी निस्तेज बनीने एक मोटा आम्रवृक्षनी छायाने प्राप्त करी पापने लई निराश थईने बेठी. श्वासोश्वासने रूंधती अने पोताना आत्माना स्वरूपने विपरीतपणे चिंतवती ते वियोगवाळी थई वनवासमां रही. __ अहिं मनोहर अने रागी राम राजा तेणीना वियोगथी आतुर थई सभा . विसर्जन करी तत्काळ अंतःपुरमां आव्यो. त्यां जेम जीव वगरनुं शरीर होय अने स्वजन वगरनुं नगर होय तेवू राणी जयावळी वगरनुं अंतःपुर ते मानवा लाग्यो. अंतःपुरना रक्षकना जार लोकोए राजाने राणीनो वृत्तांत जणाव्यो, एटले पोतानी प्रियाने मेळववाने माटे तरत सकाम थई ते कामदेवना मंदिर प्रत्ये चाल्यो. त्यां रस्तामां आंबाना वृक्ष नीचे बेठेली पोतानी प्रियाने दीन थयेली जोई ते पण तेणीना जेवो ज अज्ञ हृदयवाळो थई गयो. राजा पासे आवेलो पण ते प्राज्ञ स्त्रीना जाणवामां आव्यो नहीं. कारण के ते वखते तेणी चिंतवन करवामां आसक्त थई रही हती. राजा क्षणवारे स्थिर थईने पोतानी प्रिया प्रत्ये बोल्यो, "भद्रे! आजे तने आq अभद्र शुं थयुं छे? के जेथी तुं जुदी तरेहनी थई गई छे." आ सांभळी राणी भानमां आवी अने जेवामां उंचे जुए छे तेवामां तेणीए ते दयाळु राजाने जोयो, तत्काल तेणीए आ प्रमाणे विचायु, "अरे मारा स्वामी प्रत्यक्ष आव्या, तो पण में 1. पुष्पवती राणीपक्षे रजवती अने जुईपक्षे पुष्प-फूलवाळी. 2. शीतळ किरणोवडे अमृत सिंचन. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 145
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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