SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावतत्त्व उपर चंद्रोदरनी कथा तृतीय सर्ग ( भावाधिकार ) ब्रह्मगुप्तसूरि कहे छे हे राजा पद्मसेन! में तमोने श्री धर्मरूपी कल्पवृक्षनी त्रीजी तप नामनी शाखा कही. हवे तेनी चोथी भाव नामनी विशाळ शाखारूप शाखा कहुं, ते सांभळो-केवळ दान, शील अने तपथी मनुष्योने केवळ ज्ञान थतुं नथी, परंतु भाव नामनी एकली शाखाथी ज अत्यंत महान् शिवभक्ति-मोक्ष मेळववानी शक्ति प्राप्त थाय छे. जेम नीरोगी माणसने रुची प्रमाणे घणुं अन्न मळवाथी पुष्टि थाय छे, तेवी रीते धर्मनी अंदर पण 'मात्राहीन एवा पुरुषने ते भावनी शाखाथी धर्मनी पुष्टि थाय छे. 2 जन्माक्षरमां ग्रहो बीजा स्थानोमां रह्या होय, तो पण ते ते भावनी राशिनुं फल आपे छे, परंतु जो तेओ वक्र के अतिचारने पाम्या होय तो ते फळ आपता नथी. हे जनो! जेम रसोई लवण नाखवाथी रसवाळी थाय छे, जेम भोजन घी वडे सबळ शक्ति- ताकात आपनारुं थाय छे, जेम वस्त्रमां पटवास (पडोपांदडी) नाखवाथी ज तेनो सारो रंग देखाय छे अने जेम चूर्णने भावना आपवाथी ते रसिकोने प्रिय थई पडे छे, तेम सर्व गुणवाळो धर्म भावनाथी संपूर्ण बने छे, तेथी हे भव्यो ! तमो सर्वदा भावयुक्त एवा धर्मनुं आचरण करो. दान वगेरे धर्मनी साथे जो भावना होय, तो ते 'भावतुं हतुं ने वैद्ये कह्युं' तेना जेवुं थाय छे अने ते सोनुं अने सुगंध मळ्याना जेवुं छे, ज्ञाननुं दान करवुं, ते अनेक गुणोना स्थानरूप छे, पण जो ते सारी रीते विचार्या वगर बीजाने आपवामां आवे तो ते शुभ गणातुं नथी, जे दयादान करवुं ते सुखने आपनारुं छे, परंतु ते कंलियुगमां घणुं दुष्कर छे, कारण के कलियुगमां बधा प्राणीओ आरंभमां तत्पर होय छे. वळी द्रव्यनो व्यय करी धर्मोपष्टंभ दान करवानुं कह्युं छे, परंतु तेमां पण काळ तथा पात्र वगेरेनो योग थवो दुर्लभ छे. धर्मनी बीजी शाखा जे शील छे, ते मुक्तिरूपी लक्ष्मीनी लीलावाळु छे, परंतु तेनुं पालन करवुं घणुं मुश्केल छे, कारण के ते शील ब्रह्मचर्यनी नव गुप्तिओ - वाड 1. मात्राहीननो अर्थ नीरोगी पक्षे औषधीनी मात्राथी रहित एम थाय छे अने धर्म पक्षे परिणाम रहित एम थाय छे. 2. कहेवानो आशय एवो छे के, जन्मग्रहो भावमां होय तो ज फल आपे छे तेम भाव होय तो ज धर्मनुं फळ मळे छे. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 143
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy