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पूर्णकळशनी कथा सत्वर जाओ अने तमारे मंत्री ज्ञानगर्भने कहेवू के, 'कोईनो भय राखशो नहिं हुं जलदी शत्रुने शिक्षा आपीने त्यां आवीश.' तेनुं आ वचन सांभळी तेओ निर्भय थई पोताना नगर तरफ चाली नीकल्या." पछी कुमार पूर्णकलशे त्यां राज्यनी सारी व्यवस्था करी सर्व संपत्तिने आपनारा पेला सर्वानुभूति यक्ष- स्मरण कयु. तत्काळ ते यक्ष त्यां आव्यो अने तेने पोताना गजेंद्र उपर चडावी ज्यां नरसिंह राजा सैन्य साथे रह्यो हतो, त्यां पहोंचाड्यो. आ तरफ पेला दूतनो संदेशो सांभळी नरसिंह राजा प्रथमथी ज पोताना नगरमांथी नीकळी कुंडिनपुर तरफ प्रयाण करतो हतो. गजेंद्र उपर रहेला पूर्णकलशने आकाशमार्गे आवतो जोई राजा नरसिंह पोताना मनमां आश्चर्य पामी विचार करवा लाग्यो के, "शुं आ औरावत हाथी उपर इंद्र पोते आवे छे? के कोई विद्याधर आवे छे? मनुष्यनी शक्ति आवी होय नहि." आ प्रमाणे ते राजा चिंतवतो हतो, त्यां तो कुमार पूर्णकलश तेनी समीपे आवी पहोंच्यो. तेने जोतां ज ते 'नरसिंह हतो, छतां पण ते काळे ते कार्यमूढ बनी गयो. कुमार पूर्णकलश बोल्यो, "तुं जे भुजाना बळथी ज्ञानगर्भ मंत्रीनी पासे दंड मागे छे. ते तारी भुजानुं बळ मने हमणां ज बताव. जे मारो सेवक होय, तेनो हुं सदा पूर्णकलशरूप पूर्णकलश कुमार छु, परंतु जे मारो शत्रु छे, तेनो तो हुं कुमार-नठारी रीते मारनारो छ." आवा वचन सांभळी राजा नरसिंहे पोताना उग्र सुभटोने कह्यु के, "अरे! आ नराधम पुरुषनो निग्रह करो, निग्रह करो." राजानुं आ वचन सांभळी ते उग्र सुभटो हाथमां हथीयारोनो समूह लई 'मारो, मारो' एम बोलतां युद्ध करवा उभा थया. ते वखते पेला यक्षे जाणे चित्रमा आळेखेला होय तेम तेओने स्तंभित करी दीधा. निर्भाग्य मनुष्योनी वांछा क्यांथी पूरी थाय? ते काळे राजा नरसिंह छतां पण एवो थई गयो के ते स्तंभने भेदीने शत्रुनो नाश करी शक्यो नहीं. ते समये कुमार बोल्यो "अरे? तुं शा माटे चिंता करे छे? आ बीजा सेवकोनी शं जरूर छे? आपणे बंनेज सामसामा युद्ध करीशुं." ते सांभळी राजाए मनमां चिंतव्यु के, "आ कुमारे मने युद्ध करवा बोलाव्यो, ते छतां जो हुं युद्ध नहीं करूं, तो मारुं नरसिंह ए नाम मिथ्या थशे. तेथी मारे युद्ध करवू जोईए." आq चिंतवी नष्ट बुद्धि ते राजाए कुमारनी साथे लांबो वखत अघटित संग्राम कर्यो अने साथे गुणग्राम पण अघटित कर्यो. पछी 1. नरसिंह-पुरुषोमा सिंहरूप हतो. छतां पण कांई काम न सूझे. तेवो मृढ बनी गयो. 2. विष्णुना नरसिंह अवतारे स्तंभ भेदीने हिरण्यकशिपु नामना दैत्यने मार्यो हतो. तेवी रीते
आ नरसिंह राजा स्तंभ-अटकायतने भेदी शक्यो नहीं.
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श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग