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________________ धर्मतत्त्वना स्वरूप उपर पूर्णकळशनी कथा नगर छे, तेमां पोतानी देशनी भूमिने तंत्रथी रक्षण करनार दमितारि नामे राजा छे. ते राजाने कमळालक्ष्मीना जेवी हर्षदायक कमळादेवी नामे राणी छे अने मंत्रतंत्रमां चतुर एवो ज्ञानगर्भ नामे मंत्री छे. जिनशासनना भक्त राजा दमितारिए एक वखते मुनिचंद्र गुरुनी पासे भावसहित सम्यक्त्वने ग्रहण कर्यु. केटलेककाळे तेनी राणी कमळादेवी सगर्भा थई अने कोई विषमभाग्ये राजाने रोग उत्पन्न थई आव्यो. ते राजाने मृत्यु वखते कोई अधर्म कर्मना योगे सम्यक्त्वने दूषित करनारो शंकाकंखानो दोष थई आव्यो. तेथी ते यक्ष थयो. अहो! अन्यथा ( जो समकित दूषित - मलिन न कयुं होय) तो जघन्यथी पण सौधर्मदेवलोकमां श्रावकनो सुखदायक उत्पात थाय. अर्थात् शुद्ध समकितवंत वधारे नहि तो सौधर्मदेवलोकमां तो उत्पन्न थाय ज; पछी मंत्रीओए सगर्भा कमळादेवीने पुत्र थशे, एवी बुद्धिथी तेणीने राज्यनो भार सौंप्यो. तथापि पुत्र थयो नहीं, परंतु पुत्री थई, आथी ते राणी अति दुःख पामी. मंत्रीए तेणीने धीरज आपी कह्युं के, "हे राजप्रिया, तमे खेद करशो नहि, एम करवाथी आ प्रख्यात अने हितकारी राज्य चाल्युं जशे. माटे तमे आ पुत्रीने पुत्रनो वेष पहेरावी पालन करो. " पछी मंत्रीए आखा शहेरमां पुत्र जन्मनो उत्सव कर्यो. ते पुत्रनुं नाम कामसेन पाड्युं अने अनुक्रमे वधवा लाग्यो. ते दमितारि राजाना जीवरूपे हुं यक्ष थयो छं अने में अवधिज्ञानथी बधुं जोयुं छे. हवे ते राजकन्या हमणां छूपावी शकाय नहि तेवा उत्कृष्ट यौवनवयने प्राप्त थई छे. हे महाशय, तुं हमणां त्यां जा अने ते राजकन्यानुं पाणिग्रहण कर अने त्यांनुं महाराज्य भोगव." कुमारे तेम करवाने कबूल कर्तुं एटले ते यक्ष आदरथी पोताना हाथमां अंकुश लई ते गजेंद्रने आकाशमार्गे चलाव्यो. कुंडिनपुरनी पासेना उद्यानमां आवीने साधक सहित कुमारने सत्वर हाथी उपरथी उतार्या पछी ते यक्षे रूपने फेरवे तेवी विद्या आपी आ प्रमाणे कयुं, "हे कुमार, स्त्रीनुं रूप लई ते कुंवारी कन्याने अवश्य परणी ले." पछी कुमारे विद्याना प्रभावथी कन्यानुं रूप धारण कयुं. अने यक्षे हाथी, घोडा वगेरेनुं वैक्रिय सैन्य उभुं कर्यु. पछी यक्षे साधकने बराबर शीखवी ज्ञानगर्भ मंत्रीनी पासे मोकल्यो. तेणे आवी मंत्रीने आ प्रमाणे कह्युं, "हे मंत्रिन्, सिंहलद्वीपना राजाए पोतानी पूर्णकलशी नामनी स्वयंवरा कन्या कामसेन कुमारने माटे मोकली छे, तो ते बंनेना जेवी रीते न्याय सहित विवाह थाय, तेवी सर्व प्रकारनी उत्तम सामग्री सत्वर तैयार करो . " मंत्रीए तेनुं सर्व वचन तेनी आगळ स्वीकार्य, पछी तेने विदाय करी पोते राणीनी पासे आव्यो अने स्वयंवरा थई आवेली कन्यानो सर्व वृत्तांत राणीने निवेदन कर्यो. ते सांभळी श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 122
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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