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गुरुतत्त्व वर्णन विषे सांभळो के, जिन अर्चा- पूजाने करनारो गोपाळ पोताना गोपाळपणानो त्याग करतां छतां पण सर्व शुभ-अर्थने आपनारा एवा उच्च 2 गोपाळ पदनो आश्रय करे ज त्रिविष्टप प्रभु जीव विष्टपप्रभुनी पूजा करतां अक्षर (अक्षयअखंड) पदने उपार्जन करनार थाय, तेमां कांईपण आश्चर्य नथी. 'जिन असंख्यरूपी छे, छतां कोई रीते अरूपी पण कहेवाय छे अने सवर्ग-सघळे व्यापक छे छतां ते लोकाग्रने प्राप्त थयेला कहेवाय छे. 'स्फटिक मणिनी जेम ते जिन भगवान् स्वभावथी निर्मळ छे, परंतु संगने लईने ते तेवा स्वरूपताने पामे छे. आत्मा पण जलनी पेठे स्वच्छ छे, छतां रजना कादवने लईने गोत्रना आधार पणाने प्राप्त थई कलुषताने पामे छे, पण ते ' कतकचूर्णनी जेम श्री जिनभगवानने प्राप्त करी पाछो पोताना शुद्ध स्वभावने प्राप्त करे छे. तेथी हे भव्य जनो, सदा श्री जिनभगवानुं ध्यान करो. जे मनुष्यो सिद्ध थया छे, सिद्ध थाय छे अने हवे सिद्ध थवाना छे, ते सर्व मनुष्य श्री वीतराग प्रभुना अपरिमित ध्याननी धुराने धारण करनारा होय छे." आ प्रमाणे देवतत्त्व समजवुं. ।।५४४।।
गुरुतत्त्व वर्णन
गुरु बोल्या, "मैं तमारी आगळ कांईक देवतत्त्व प्रकाशित कर्तुं छे. हवे थोडुं गुरुतत्त्व सांभळो-लोको गुरु विना क्यारे पण कृत्य जाणी शकता नथी, तेथी गुरुनुं वचन (आज्ञा ) लईने ज सर्व क्रियाओ करवी जोईए. लोकमां जे मुख्यत्वे तत्त्वने जणावे छे गुरु कहेवाय छे. तेमां जे ते विशेषपणे क्रियायुक्त होय तो ते सोनामां सुगंधना जेवो छे. कविओ वाणीमां गुरुपणाने लईनेज शास्त्राने पण वखाणे छे. कारण के लोको तेनाथी ज सतत कार्याकार्यने जाणी शके छे. गुरु विना शास्त्रनुं स्वरूप कोण निरुपण करी शके? तेथी गुरु पासेथी ते शास्त्रने सारी रीते जाणीने पछी कार्य आचरतुं ते गुरुना वचननुं महत् तत्त्व बुद्धिना गुणोथी ज जाणी शकाय छे. ते सिवाय जो बहारनी बुद्धिथी जाणवा मागे तो मुग्धनी जेम दुःख प्राप्त थाय छे.
1. अहीं गोपाळ - देवपाळ अथवा पक्षे विष्णु ते पोताना गोपाळपणानो त्याग करीने गोपालगो-वाणीनापाल- प्ररूपणा करनार एवा परब्रह्मना पदनो आश्रय करे ज. 2. गो = पृथ्वी तेनुं पालन करनार राजापणाना पद. 3. त्रिविष्टप प्रभु-त्रणलोकना स्वामी - विष्णुरूप जीव. 4. विष्टपप्रभु - जगत्पति जिनभगवान्. 5. जिन-आत्मा. 6. जेम स्फटिकमणिमां जुदा जुदा रंगना प्रतिबिंब पडवाथी ते जुदा जुदा रंगनो जणाय छे, पण वस्तुताए पोते शुद्धस्वरूपी छे, ते प्रमाणे आत्मा समजवो. 7. गोत्रपर्वत अथवा गोत्रापृथ्वी. 8. कतकचूर्ण नाखवाथी जे जल शुद्ध थई जाय छे, तेवी रीते आत्मा श्री जिनेश्वरना ध्यानथी शुद्ध थाय छे. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग
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