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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा पछी राजाए करकमळनी अंजलि जोडी आ प्रमाणे कह्युं, "आ शीलवती 'वामा छतां पोते शीलवाळी केम थई ? तेमज ते बुद्धिवाळी 2 प्रमदा छे, छतां प्रमदउत्कष्ट मदथी युक्त केम नथी?" गुरु बोल्या, "राजन्, आ शीलवतीए पूर्वभवे शीळनो आश्रय करेलो, तेथी आ भवमां पण तेणीए शीलनी लीला धारण करी छे.” राजा बोल्यो, 'भगवन्, आ शीलवतीनो पूर्वभव केवो हतो?" घणा संकल्प-विकल्पने जाणनारा गुरु बोल्या, "कुशपुर नामना एक श्रेष्ठ नगरमां विदुर नामे एक राजा हतो, ते 'प्रदरनी प्राप्तिमां पण अंदर अने सुंदर देहने धारण करनार हतो, ते नगरमां पापकर्म करवामां मंद, सुखनी लालसावाळो, मूर्खपणाने त्यज़नारो अने पुण्यनी लक्ष्मीना कलशरूप सुलस नामे श्रावक रहेतो हतो. सुयशा नामे एक स्त्री हती. ते स्फुरायमान यशवाळी, पतिने वश रहेनारी गतिथी हाथणीने जीतनारी अने सुंदर स्त्रीओना वर्गमां शिरोमणिरूप हती. तेने घेर स्वभावथी रुचिना पात्र रूप अने दयाधर्ममां तत्पर एवो दुर्गम नामे एक सेवक हतो तेनी पत्नीनुं नाम दुर्गिला हतुं, एक वखते पर्युषणपर्वमा सुयशा श्राविकाए दुर्गिलाने साथै लई साध्वीनी समीपे पौषधव्रत ग्रहण कयुं. त्यां उत्सव थतो जोई दुर्गिलाए चंदन नामनी प्रवर्त्तिनीने पूछयुं के, "आजे कयुं पर्व छे?" प्रवर्त्तिनीए ते भद्रिक स्त्रीने कह्युं, "जेम देवोमां सर्वज्ञ प्रभु, अक्षरोमां ॐकार, दानमां अभयदान, गुणोमां विनय, तीर्थोमां शत्रुंजय, व्रतोमां ब्रह्मचर्य, नियमोमां संतोष सर्व तपमां शम, तत्त्वोमां सदृर्शन अने मंत्रोमां परमेष्ठिमंत्र- नवकारमंत्र उत्तम कहेल छे, तेवी रीते पर्वोनी अंदर पर्युषण पर्व मोटुं कहेलुं छे. आ पर्युषण पर्वमां जिनालयमां के पोताना घरे अष्टाह्निका उत्सव करवो, निर्भय जीवदया करवी, ब्रह्मचर्य पाळवुं, कोईनी साथे कलह करवो नहिं, कुकर्मवाळा व्यापारो छोडी देवा, अमारी प्रवर्ताववी, यशाशक्ति तपस्या करवी, विविध जातना अभिग्रहो लेवा, बे वखत प्रतिक्रमण करवुं, त्रिकाल देवपूजा करवी, पांच दिवसोमां आदरथी कल्पसूत्र सांभळवुं, भावना सहित उत्तम प्रभावनाओ करवी, अष्टम तप करवुं अने श्री जिनेश्वरनुं ध्यान धरवुं तेमां आजनो मुख्य अद्भुत दिवस छे, तेने माटे तो शुं कहेवुं ?" दुर्गिला बोली, "में आजे प्रातःकाले दातण कर्तुं छे, ते छतां जो उपवास थतो होय तो मने करावो." प्रवर्त्तिनी बोल्या, "ते सचित्त 1. वामा एटले सुंदरी अने पक्षे विषम. 2. जे प्रमदा प्रकृष्ट मदवाळी होय ते प्रमदप्रकृष्टमदी रहित न होय - ए विरोध. 3. प्रदर एटले उत्कृष्ट भय, तेनी प्राप्तिमां अंदरभय वगरनो अने सुंदर देहवाळो हतो. अहिं विरोधाभास लेतां प्रदर रोगनी प्राप्तिमां पण अदर-दर वगरनो अने सुंदर देहवाळो हतो. श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 101
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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