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________________ शीलव्रत उपर शीलवतीनी कथा युक्त थई रत्नाकरना स्थानमा गयो, ते तेने सर्वथा घटे छे. पछी रत्नाकर शेठ पोताना पुत्र अजितसेन उपर घरना बधा व्यापारनो भार मूकी पोते नीतिनो आश्रय करी मनमां निश्चय राखी श्री जैनधर्म आचरवामां तत्पर बनी गयो. ते एकचित्ते श्री जिनभगवाननुं ध्यान करतो, बे वखत आवश्यक (प्रतिक्रमण) क्रिया करतो, त्रिकाळ जिनपूजा करतो, चतुर्विध धर्मने आचरतो, पांच प्रकारना शुद्ध आचारने पाळतो, षट्कायजीवोनी रक्षा करतो, सारा द्रव्यरूपी जळना पुरथी सात क्षेत्रोने पुरतो, आठ प्रकारना मदनो संसर्ग छोडतो, नव तत्त्वोनो ज्ञाता थतो, दश प्रकारना यतिधर्म उपर श्रद्धा राखतो, चित्तने समाधिमां राखतो, श्रावकनी अगियार प्रतीमाने वहन करतो, गृहस्थना बार व्रतोने अने बीजा उग्र नियमोने पाळतो (ते रत्नाकर शेठ) खरेखर उत्तम श्रावक बनी गयो. एक वखते रात्रे कुटुंब बधु पोतपोताना काममा अतिशय लागेलं, ते वखते शीलवती मध्यरात्रे एक घडो लई कोई ठेकाणे चाली गई. घणी वेळा सुधी बहार रही ते पाछी पोताने घेर आवी. ते काळे जाग्रत थयेला अने बहार दृष्टि करनारा रत्नाकर शेठना ते जोवामां आवी. तेने जतां ज तेणे विचायु के, "आ वधू कुशीला-दुराचारी लागे छे, माटे तेणीने हवेथी घरमा राखवी योग्य नथी. कारण के कयुं छे के, "कुळने माटे एकनो त्याग करवो, गामने अर्थे कुळनो त्याग करवो, देशनी खातर गामनो त्याग करवो अने पोतानी खातर पृथ्वीनो त्याग करवो." तेम वळी आवी हलकी वात बीजानी आगळ पण कहि शकाय नहीं. तेने माटे प्राचीन कविओए कह्यु छे के, "द्रव्यनी नुकसानी, हृदयनो परिताप, घरमां बनेलां नठारां आचरण, वंचना-छेतरामण अने अपमान एटलां वानां बुद्धिमान् पुरुषे प्रगट करवां नहीं." हवे आ वृत्तांत पुत्रने जणावी हुं तेणीने घरमांथी बहार कढावं." आ प्रमाणे विचारी रत्नाकर शेठे रात्रिनो बधो वृत्तांत पुत्रने जणाव्यो. ते सांभळी श्रेष्ठिपुत्रे आ प्रमाणे विचायु, "जो आ पृथ्वी उपर चंद्रनी कळामांथी अंगारानी वृष्टि थाय, अमृतमाथी उग्र झेर उत्पन्न थाय, पश्चिम दिशामां सूर्यनो उदय थाय, समुद्र मर्यादा मूके अने कुलपर्वतोनी श्रेणि चलित. थाय तो आ शीलवती कुशील बने. परंतु गुरुनी जेम आ पितानुं वचन अमेय (अकळ-न कळी शकाय एवं) अने उल्लंघन करी न शकाय एवं छे, तेथी हाल मारे मौन राखीने रहेq युक्त छे. जो हुं आ स्त्रीनो पक्षपात करीश, तो मारा पिता लज्जाने धारण करनारा एवा मने स्त्रीना मुखने जोनारो अर्थात् तेणीने वश थई गयेलो (बायलो) जाणशे. जेम शीलसेवनथी सुमनस्-पुष्पोने ग्लानि थाय छे; श्री विमलनाथ चरित्र - द्वितीय सर्ग 84
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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