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________________ खभारा भाई कोठल ०० प्रभु ? तारा न शरशमा ९ छु. 'भै खायो शर तिसरी' है અમાય છું, प्रभु ! विषय-4 कायश त्रस्त हूं. तुं की तारा सत्यन्त " सुरक्षासक्रमां सपेटरी से, . मंगल चेक भगाने वर्तुल खाती सगळ्या बदु है। खायं समयीन प्रतुनु सुरकाय समताची साले काफag. মयुं 9% ঐ परत येतनानी बाबु अर्थ बिस्त्यात है, जीसबांनी सन्नता जाप लामा शी ने प्रतुंनी कृपाको सभा धान, परमात्मा অণরন " न अंगण, ०० सिद्ध ऋषि (साधु) रूने सद्दर्भ ३ , पढ़ा तमे न हो | यार मेगजमi अरिहंत पछींना काही भंगजो यहां सरिएत शांর गया। वीतराग स्तोत्र'ना भी+ श्रोकमा झां बात स्पा रीते भएदोर्ध छ : त्वां त्वत्फलं भूतान सिद्धान् त्वच्छाशन रतान भुबीनू प्रतिष नोडस्य भावतः " त्वच्छाशन च शरज प्रभु तुमने, तमारा झ्फ ३५ i asरिहंत प्रत्यु का स्थापन 'शासमने पायीले
SR No.005864
Book TitleShakrastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmalatashreeji
PublisherPremilaben Jayantilal Shah
Publication Year2012
Total Pages224
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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