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________________ 99 363 वंशग्य बगरना क्वो लते धर्म वो लले धर्म करे चला संस्कार अधर्मना व चडे छे, खात्म उपर धर्मना चाडे समझनी खाद्मा सेवतो. कटारे धराग्य युक्त कक्ष संसारनी प्रवृत्ति पूरे छत्ता पा संस्कारतो तेथी हिजच तो या मनुजेध तो चुलयनों ४ प्राडे 5 क्यारे मिथ्याहार कंप आराधना करतो होय छत्ता अनुबंधतो चायुनो ४ पांडे छे छ · 7 खनुबंधनी खाधारशीला हाय के प्रेम धे पखत तमारा संगासंबंधी घरे खाली लय यां नमने तेना तरह रस नहोचा चहा व्यवहारधीः जेस पडे. खाम थाछा श्रीडगा होचा के नी उहे परगू नहि, त्या तमे तेनी साथ के वार्तालाप બેચ્યૂ દિવસ પછી चाहू न रहे डराते वजने तमने तैमा रस नहोतो. के वस्तुमा इस नवी ने वस्तु थोडा वजनमा विस्मृतिमा डाडाव छे. खात्मा पर केमा इस न होच देवा अनुभव खंडित होता नहीं, ने भेमी इस होयते वस्तुमा रेनो अनुभव होय तो पहल खंडित धाथ छे. तेथी -सहायार छो तेजी तेनो के तीव्र रस होतो गाठ संस्कार पडशे. नाहितर ते गुलो इडल નંતૂર पूरता रहेशे लवोलव साधे यह लच धर्म चापो या लव खावे लय शुभ अनुबंधधी के धर्म तमाशे नमो जनम्‌नों साधीहार धंधे धर्म डाले तमाशे छायो न हो ते धर्म अनुजध वाइनो उठेवाच. तेथी धर्म खेवो डरवानी खात्मा पर -
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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