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________________ 111 15 पी हे घ:त: खाज, डान माटे लागली नाङ मांडु उशु क नहीं, तेथी व्यव करवानी शड्यता नही, ते तरडुडीया चल मारी शुडवानुं नधी, लेम क जयवा माटे पल अंश भारी उतू नही. सविडसित होवाळी सांगली व्यडत डरवानी तेनामा क्षमता नधी तेनी सामे क्यारे इतरांने तम मारवा लव प्यार तू छूखा प्रयत्न ९२श यी साथीस उरंशे खाम केटलो व विकसित बेटली होनी हिंसा ਤ माहू हे उठोर उर पडशे क्यारे येडेन्द्रिय ક૨વું ' कुवा श्री सागरगी- चंडत डरो, राज्ता नही सँजी चयेन्दीय भव भुवो छःखखापता लागलीयो करहार व्यंडत डरश ने तमारे वधारे दूधवं पडशे हिंसक लाल या वर्षो से अपेक्षा तज्यु छेड़े मोटा भुवने मारता चांप वधारे लागे. खोरी बघती उठोरता ना लाल प्रमाले बंध खावशे सला: विक्षित कवने डोरो मारवा खावे :प्यारे तेने पधारे उर्मबंध धायर -- खेड चाहडाने घोडो तिने तो ܘ ܘ ● - भवने • साहूजन: ऊपर नगइया मुल्ज विकसित येतना वधारे छे तेथी ते मारवा खावनार व्यक्तिने खोयले के भेह गडे छू डोह डाबल वगर मारतो बधाई हेप धाय छे होवाना डाउलो खाते रोग ध्यान यारे चाहान तीव्र खार्ल रोध यान मन चिडसित रामनवा मन धनुं N छे વધારે થાય चेन्दिय बंधी गन्दय बधी, तेली नही "
SR No.005862
Book TitleAnukampadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugbhushanvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages400
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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