SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ रिखवचंदडागा रचित सूरित्रय अष्टप्रकारी पूजा अन्तर्गत हीरविजयसूरि अष्टप्रकारी पूजा ताके पाट परम्परा, जगद्गुरू कहलाय 1 भट्टारक पदवी तणा, हीरविजयसूरिराय ॥ यवनों को प्रति बोधते, जैन ध्वजा लहराय । अकबर हो परचा दिया, द्वितीय प्रभावकाचार्य ॥ अथ प्रथम जल पूजा अंक सिद्धि इन्द्रिय विधु वर्षे, मिगसर मास सुखारारे । सुदी नवमी उत्सव पालणपुर, गुर्जर देश मझारारे ॥ ५॥ तात 'कूंरा' माता 'नाथी' घर, आनंद हर्ष अपारे । प्रगटे हीरविजय महाराजा, जग जीवन हितकारारे ॥ ६ ॥ कर निधि इन्द्रिय भूमी वर्षे दूर हरे अंधकारारे । वदी दूज कार्तिक पाटण में, चारित्र पद अवधारारे ॥ ७॥ सूरीश्वर नभ चंद्र ऋतु शशि, वर्षे मोहनगारारे । भट्टारक पद ं जगद्गुरू का, जगह अधिकारारे ॥ ८॥ . दिल्लपति शाह दास जिन्हों का, किया नमन सत्कारारे । चम्पाबाई श्राविका को, भवजल पार उतारारे ॥ ९॥ अथ द्वितीय चंदन पूजा जग में घोर तिमिर जब छाया 1 प्रगटे हीर विजय महाराया ज्ञान ज्योति प्रगटाया गुरू को लाखों प्रणाम ॥ ७ ॥ 11 २०३
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy