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रिखवचंदडागा रचित
सूरित्रय अष्टप्रकारी पूजा अन्तर्गत हीरविजयसूरि अष्टप्रकारी पूजा
ताके पाट परम्परा, जगद्गुरू कहलाय 1 भट्टारक पदवी तणा, हीरविजयसूरिराय ॥ यवनों को प्रति बोधते, जैन ध्वजा लहराय । अकबर हो परचा दिया, द्वितीय प्रभावकाचार्य ॥
अथ प्रथम जल पूजा
अंक सिद्धि इन्द्रिय विधु वर्षे, मिगसर मास सुखारारे । सुदी नवमी उत्सव पालणपुर, गुर्जर देश मझारारे ॥ ५॥
तात 'कूंरा' माता 'नाथी' घर, आनंद हर्ष अपारे । प्रगटे हीरविजय महाराजा, जग जीवन हितकारारे ॥ ६ ॥
कर निधि इन्द्रिय भूमी वर्षे दूर हरे अंधकारारे । वदी दूज कार्तिक पाटण में, चारित्र पद अवधारारे ॥ ७॥
सूरीश्वर नभ चंद्र ऋतु शशि, वर्षे मोहनगारारे । भट्टारक पद ं जगद्गुरू का, जगह अधिकारारे ॥ ८॥
. दिल्लपति शाह दास जिन्हों का, किया नमन सत्कारारे । चम्पाबाई श्राविका को, भवजल पार उतारारे ॥ ९॥
अथ द्वितीय चंदन पूजा
जग में घोर तिमिर जब छाया 1 प्रगटे हीर विजय महाराया ज्ञान ज्योति प्रगटाया गुरू को लाखों प्रणाम ॥ ७ ॥
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