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________________ १० श्री दयारुचिरचित दादाजी स्तवन 1 ( म्है तो न्यारा रेहम्यांजी देराणी-जेठाणी आयै मेला रहम्यांजी । ए देशी ।) म्हारा गुरुदेवजी हो लाल, गुरुदेव विघन निवार | म्हा 。'i गुरुदेवनायक माहरे, ने गुरुदेव है. शिरदार, श्रीगुरुदेवके चरण नम्यांथी, होवे जयजयकार | म्हा०: १ ॥ तपगच्छनायक है गुणलायक, श्रीविजय हीरसूरीन्द । श्री गुरु तोरा पाय नमन्तां पां दोलत वृन्द । म्हा०. ॥ २ ॥ साह अकब्बर वादकर्यो तुम जीते गुर जस पाय । जीवदया गुरु तुम वरतावी, तपगच्छ सुजसं चढाय | म्हा० ॥ ३ ॥ जमुनां जलपर बाट चलाई, चल आयै गुरु पार । अधर धारा पर चालण लागे, गुरु करामात है सार । म्हा० ॥ ४ ॥ श्रीगुरु दानसूरीश्वर पाटै, हीरविंजयमें तेज 1 कुमति तिमिर सहु दूर निवारी, जिनशासन करे हेज | म्हा० ॥ ५ ॥ वाद चौरासी श्रीगुरु जीत्या, जैनशासन शोभ चढाय । दिल्ली मांहे दया वरतावी, जैन धरम दीपाय | म्हा० ॥ ६ ॥ गुरु हीरसूरी सुपसायै, पामै अरथ भण्डार 1 हीरगुरु के जे गुण गावै, दयारुची जयकार | म्हा० ॥ ७ ॥ 5 १८४
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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