SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माइ कहे पातसाह सुनो वात हमारी पीर मार हीरविजे गुजरात तुमारी पातसाहजी यों कहै पीर क्यों आवे तेरा के भेजों पालषी के सुषासन मेरा के भेजों हाथी घोडा .. जेठा कहो कीन षुस करे जीन मुनि आवे बेठा लप थांनसींघ उठकर अरदास कर. जोडे . पातसाहजी पीर हमारा न चढे घोडे नांम. लेह जगदीसका निपटकर वनेजोसादे. माल षाक करी गर्न पाव भी चाले. पीयादे पातसाहजी यों कहे पीर हम देखें तेरा साहिबषानकौ लीषो फुरमांन जो मेरा लीषो हेतके - तुम मागै सो दीजीयै फुनी हां श्रीहीरविजै मुनिराइकौं वेगे भेजीयै तो फुरमान लीषा उ(व)जीरने सो कीनी उजबक छापट पा(वा)जीवेग बुलाइया सो साह अकबर आप छंद अरील' साह वचन मेवरा जो आये तिनकों बहुतीक दांम दीलाये साह कहे बे करुं नीहाला श्रीहीरविजैको ल्यावो दरहाला फुरमान साह मेवरा जो दीन्हा करी सलाम सीस पर लीन्हाट कमरजंग पर सोभत सीसं इनी विध चले मेवरा वीसं ___ छंद भुजंगीप्रिया चले मेवरा वीस बने जो आछे सीरे पाग वांकी अंग बने जो काछे परै सीस सोहे कमरबंध जंगा ___ पाये कफुदना अंग वागा सुरंगा BOLD१७२ | MORLD
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy