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________________ ar श्रीहीरविजयसूरि छंद श्री शारदा तुझ पाये लगुं कर जोडीने वर विद्या मगुं कर पुस्तक गवर वेणा छज्जें वाहन हंस तुमही विरज्जे ॥ १ ॥ गवरीसुत अरदास सुनीजे सेवक जांणी नीवनिध दीजे शुद्धबुद्ध वर वांछित दायक कहुं छंद तपगछपति नायक ॥ २ ॥ दोहरा तपगछपत हीर विराजत है : श्रीहीरविजेसूरिराय . . च्यारुं खंडों जांणीय · सो वंदत भूपति पाय ॥ १ ॥ अकबर साह बुलाइया लिष · भेज्या फुरमांन . सो भूपति एसा कोन हे फीरत चिहुदिस आंन ॥ २ ॥ छति अकबर साह. हे आन फीरे सो चारौं खंड जोडाहीं एकही, ममावंत हे ॥ ३ ॥ ॥ छंदनी चाल जाणवी ॥ एकह नंद हमाउ अवचल माह तपत जो आगरे कुलजुग माही महीय जेनी आन तो तितने फीरे एक तषत दीलिसहर आगरा फतेपुर वषानीये पतसाह अकबर छत्रकी इम चारौ षंड सो जानीये उत्तर दच्छन पुरव पछिम सब वसुधा तुम. लई भोपत जे वडे राजा आन बेटी तिन गई साह चढत दलै भार इतनो सेस कंपे ते सही दाल इंद्र महिमा मेर डोले सुनत हय गय ते सही दल कुच होत उडत षेह आलोप भये जो भान ही REL | १७०LOD
SR No.005849
Book TitleHir Swadhyaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahabodhivijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages356
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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