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कविसोमरचित
श्रीहीरविजयसूरि सवैया सवे मृगनयनी चली गुरुवंदन छूट मनो. गजराज घटा करी कंकण चूडि पलकती नेउर हार बण्यो सिर टूट लटा गावती मंगल गीत सुहासणि पूरति मोतीको चोक घटा कवि सोम कहि गुरु हीर भट्टारक और करे सब पेट नटा ॥ १ ॥ किहा मृगनाभि किहां षलषंड किहां कनक किहां पीतरीआ किहा लूण कपूर किहा माणिक करछत्र किहा शिरछीतरीयां एसोज परंतर हीरकि आगिलहि कुमति सित ठीकरीयां कवि सोम कहि गुरु हीर भट्टारक ओर भट्टारक तीतलीया ॥ २ ॥
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