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આ પ્રકારે પ્રમાદ વગરનો થઈને શાસ્ત્રોક્ત મુજબ જયણાપૂર્વક ક્રીયાઓ કરતા એવા સાધુ દ્વારા જો કોઈ પ્રાણી મરી જાય તો તેને કર્મનો બંધ અવશ્ય થાય છે. પરંતુ પરિણામોના ભેદથી કર્મબંધનો ભેદ થાય છે. આવા કર્મનો બંધ તીવ્ર નથી હોતો. કારણ કે તેના પરિણામ (ભાવના) તે પ્રાણીને મારવાના નહોતા, તેનું ફલ આ ભવમાં જ પ્રાપ્ત થઈ જાય છે. પરંતુ જાણી જોઈને કોઈ પ્રાણીનો ઘાત (હિંસા) કરે તો પ્રાયશ્ચિત દ્વારા તેની શુદ્ધિ થઈ શકે છે. આવું આગમના જ્ઞાતા બતાવે છે. / ૧૫૮ || -
भावार्थ :- गुरू की आज्ञा में रहता हुआ साधु गमनागमन शयन विहार, आदि समस्त क्रियाएं यतनापूर्वक करे । इस प्रकार प्रमाद रहित होकर शास्त्रोक्त रीति से यतनापूर्वक क्रियाए करते हुए साधु के द्वारा यदि कोई प्राणी मर जाय तो उसको कर्मबन्ध अवश्य होता है किन्तु परिणामों के भेद से कर्मबन्ध में भेद होता है। ऐसे कर्म का बन्ध तीव्र नहीं होता क्योंकि उसका परिणाम उस प्राणी को मारने का नहीं है । उसका फल इसी भव में प्राप्त हो जाता है परन्तु यदि जान बूझ कर किसी प्राणी का घात किया गया हो तो प्रायश्चित्त के द्वारा उसकी शुद्धि होती है; यह आगम के ज्ञाता बताते हैं ॥ १५८॥ किम्भूतः पुनरप्रमादवान् भवतीत्याह -
से पभूयदंसी पभूयपरिणाणे उवसंते समिए सहिए सया जए, दटुं विप्पडिवेएइ अप्पाणं किमेस जणो करिस्सइ ? एस से परमारामे जाओ लोगम्मि इत्थीओ, मुणिणा हु एवं पवेइयं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहिं अवि णिब्बलासए अवि ओमोयरियं कुज्जा अवि उडं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाणुगामं दुइज्जिज्ज़ा अवि आहारं बुछिदिज्जा अवि चए इत्थीसु मणं, पुव्वं दंडा पच्छा फासा, पुवं फासा पच्छ दंडा, .. इच्चेए कलहासंगकरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाए त्ति बेमि, से णो काहिए, णो पासणिए, णो संपसारए, से णो ममाए णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे परिवज्जए सया पावं, एवं मोणं समणुवासिज्जासि त्ति बेमि ॥ १५९ ॥ ..
(१८६ ) 07ODIODIODIODOIDXOPIOIDIODOOOOOOOOOOD | श्री आचारांग सूत्र