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१०३' थी आयनिञ् प्रत्यय; 'तिकादे० ६-१-१०७' थी आयनिञ् प्रत्यय; ने 'दगु-कोशल० ६-१-१०८' थी यायनिञ् प्रत्यय वगेरे अर्थ थवाथी सौयामायनि यामुन्दायनि जने वार्ष्यायणि नाम जने छे.) ॥१०६॥
तिकादेरायनिञ् ६।१।१०७।।
तिकादि गापामांनां तिक वगेरे नामने अपत्यार्थमां आयनिञ् प्रत्यय थाय छे. तिकस्यापत्यम् ने कितवस्यापत्यम् ॥ अर्थभां तिक खने कितव नामने खा सूत्रथी आयनिञ् प्रत्यय. 'वृद्धिः ० ७-४-१' थी खाद्य स्वर इ ने वृधि ऐ आहे. 'अवर्णे० ७-४-६८' थीं अन्त्य अ नो सोप वगेरे द्वार्य थवाथी तैकायनिः अने कैतवायनिः खावो प्रयोग थाय छे. अर्थ अमशः- तिऽनुं अपत्य द्वितवनुं अपत्य. ॥१०७॥
दगु - कोशल- कर्मार-च्छागवृषाद् यादिः - ६।१।१०८ ॥
दगु कोशल कर्मार च्छाग ने वृष नामने अपत्यार्थभां यायनिञ् (यायनि) प्रत्यय थाय छे दगोरपत्यम् कोशलस्यापत्यम् कर्मारस्यापत्यम् च्छागस्यापत्यम् अने वृषस्यापत्यम् अर्थभां खा सूत्रथी यायनिञ् (यादिरायनिञ्) प्रत्यय. 'वृद्धिः ० ७-४-१' थी खाद्य स्वर अ ओ अने ऋ ने वृद्दधि आ औ जने आर् आहे. 'अस्वय० ७ - ४ -७०' थी अन्त्य उ ने अव् आहेश. 'अवर्णे० ७-४-६८' थी अन्त्य अ नो सोप वगेरे कार्य थवाथी दागव्यायनिः कौशल्यायनिः कार्मार्यायणिः छाग्यायनिः अने वार्ष्यायणिः आवो प्रयोग थाय छे. अर्थ उमश:- हगुनुं अपत्य. झेशसनुं अपत्य. दुर्भारिनुं अपत्य. छागनुं अपत्य. वृषनुं अपत्य. ॥१०८॥
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