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श्री दशवैकालिकसूत्र भाषांतर
करता।" जीवनयापन के लिए आवश्यक वस्तुओं को तब ही ग्रहण करता है जब उसके स्वामी द्वारा वस्तु प्रदान की जाए। अदत्त वस्तु को ग्रहण न करना श्रमण का महाव्रत है। वह मन, वचन, काय और कृत-कारित - अनुमोदन की नव कोटियों सहित अस्तेय महाव्रत का पालन करता है। चौर्यकर्म एक प्रकार से हिंसा ही है। अदत्तादान अनेक दुर्गुणों का जनक है। वह अपयश का कारण और अनार्य कर्म है, इसलिए श्रमण इस महाव्रत का सम्यक् प्रकार से पालन करता है।
चतुर्थ महाव्रत ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य के पालन से मानव का अन्तःकरण प्रशस्त, गम्भीर और सुस्थिर होता है। ब्रह्मचर्य के नष्ट होने पर अन्य सभी नियमों और उपनियमों का भी नाश हो जाता है। ३३ अब्रह्मचर्य आसक्ति और मोह का कारण है जिससे आत्मा का पतन होता है वह आत्म-विकास में बाधक है, इसीलिए भ्रमण को सभी प्रकार के अब्रह्म से मुक्त होने का संदेश दिया गया है। ब्रह्मचर्य की साधना के लिए आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार की सावधानी बहुत आवश्यक है। जरा सी असावधानी से साधक साधना से च्युत हो सकता है। ब्रह्मचर्य पालन का जहाँ अत्यधिक महत्त्व बताया गया है वहाँ उसकी सुरक्षा के लिए कठोर नियमों का भी विधान है। ब्रह्मचर्य उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व तथा विनय का मूल है।
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अपरिग्रह पांचवां महाव्रत है। श्रमण बाह्य और आभ्यन्तर दोनों ही प्रकार के परिग्रह से मुक्त होता है। परिग्रह चाहे अल्प हो या अधिक हो, सचित्त हो या अचित्त हो, वह सभी का त्याग करता है। वह मन, वचन और काया से न परिग्रह रखता है और न रखवाता है और न रखने वाले का अनुमोदन करता है। परिग्रह की वृत्ति आन्तरिक लोभ की प्रतिक है। इसीलिए मूर्च्छा या आसक्ति को परिग्रह कहा है। श्रमण को जीवन की आवश्यकताओं की दृष्टि से कुछ धर्मोपकरण रखने पड़ते हैं, जैसे वस्त्र, पात्र, कम्बल रजोहरण आदि। ४ श्रमण वे ही वस्तुएं अपने पास रखे जिनके द्वारा संयमसाधना में सहायता मिले। श्रमण को उन उपकरणों पर भी ममत्व नहीं रखना चाहिए, क्योंकि ममत्व साधना की प्रगति के लिए बाधक है। आचारांग ३५ के अनुसार जो पूर्ण स्वस्थ श्रमण है, वह एक वस्त्र से अधिक न रखे। श्रमणियों के लिए चार वस्त्र रखने का विधान है। प्रश्न व्याकरण सूत्र में श्रमणों के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है – १. पात्र – जो कि लकड़ी, मिट्टी अथवा तुम्बी का हो सकता है, २. पात्रबन्ध पात्रों को बाँधने का कपड़ा, ३. पात्रस्थापना - पात्र पोंछने का कपड़ा, ५. पटल पात्र ढकने का कपड़ा, ६
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पात्र रखने का कपड़ा, ४. पात्र केसरिका रजखाण, ७. गोच्छक, ८ से १० प्रच्छादक
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ओढ़ने की चादर, श्रमण विभिन्न नापों की तीन चादरें रख सकता है इसलिए ये तीन उपकरण माने गये हैं। ११. रजोहरण, १२. मुखवस्त्रिका, १३. मात्रक और १४. चोलपट्ट । ३६ ये चौदह प्रकार की वस्तुएं श्रमणों के लिए आवश्यक मानी गयी हैं। बृहत्कल्पभाष्य ३७ आदि में अन्य वस्तुएं रखने का भी विधान मिलता है, पर विस्तार भय से हम यहाँ उन सब की चर्चा नहीं कर रहे हैं। अहिंसा और संयम की वृद्धि के लिए ये उपकरण हैं, न कि सुख-सुविधा के लिए।
३२ दशवेकालिक, ६११४
३३ प्रश्नव्याकरण, ९
३४ आचारांग ११२५१९०
२५ आचारांग २१५/१४१ २२६।१।१५२
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३६ प्रश्नव्याकरणसूत्र, १०
३७ (क) बृहत्कल्पभाष्य, खण्ड ३, २८८३-९२ (ब) हिस्ट्री ऑफ जैन मोनाशिज्म, पृ. २६९ - २७७