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प्रस्तावना-४
धर्मकल्पद्रुम : यह नौ पल्लवों में विभक्त बृहत् कथा कोष है ग्रन्थान ४८१४ श्लोक प्रमाण है, इसमें अनेकों रोचक कथाएँ दी गई है।
रचयिता एवं रचनाकाल-इसकी रचना मुनिसागर उपाध्याय के शिष्य उदयधर्म ने आनन्दरत्नसूरि के पट्टकाल में की थी, आनन्दरत्न [ सूरि] आगमच्छीय आनन्दप्रभ [ सूरि] के प्रशिष्य और मुनिसागर के शिष्य थे, मुनिसागर के शिष्य उदयधर्म का और पट्टधर आनन्दरत्न [ सूरि] का पता साहित्यिक तथा पट्टावलियों के आधारसे लगाने पर भी नहीं चल सका इसलिए रचनाकाल बतलाना कठिन है, जर्मन विद्वान् विण्टरनित्स का अनुमान है कि ये १५वीं शती या उसके बाद के ग्रन्थकर्ता है।
धर्मकल्पद्रुम नाम की अन्य रचनाएँ भी मिलती है उनमें दो अज्ञातकर्तृक हैं एक का नाम वीरदेशना भी है।अन्य दो में से एक के रचयिता धर्मदेव है जो पूर्णिमागच्छ के थे और उन्होंने इसे सं०१६६७ में रचा था, दूसरे का नाम परिग्रह प्रमाण है, और यह एक लघु प्राकृत कृति है। इसके रचयिता धवलसार्थ( श्राद्ध-श्रावक) है। १. जिनरत्नकोष पृ० १८८ देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार ग्रन्थाङ्क ४० बम्बई सं० १९७३, द्रष्टव्य-हेर्टल का
लेख०Z.D.M.G भाग६५ पृ० ४२९ प्रभृति। २. विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इन्डियन लिटरेचरभाग २, पृ०५४५
३. जिनरत्नकोश पृ० १८८-१८९
- जैन साहित्य का बृहत् इतिहास भा० ७ पृ० २६०-१