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________________ अंतर आतम जीव सो, सम्यग्दृष्टि होय; चोथे अरु फुनि बारमे, गुणथानक लों सोय. ४ परमातम परब्रह्मको, प्रगट्यो शुद्ध स्वभाव लोकालोक प्रमाण सब, झलके तिनमें आय. ५ बहिर आतम भाव तज, अंतर आतम होय; : परमातम पद भजतु हे, परमातम वह सोय. ६ परमातम सोय आतमा, अवर न दुजो कोय; .. परमातमकुं ध्यावते, यह परमातम होय. ७ परमातम एह ब्रह्म हे, परम ज्योति जगदीश; परसु भिन्न निहारीए, जोई अलख सोइ इश. ८ जे परमातम सिद्धमे, सोही आतममाहि; मोह मैयल दृग लग रह्यो, तामें सूजत नाहि. ९ मोह मयल रागादिके, जा जिन कीजे नास; तो छिन एह परमातमा, आप ही लहे प्रकास. १० आतम सो परमातमा, परमातन सोइ सिद्धा विचकी दुविधा मिट गइ, प्रगट भइ निज रिद्ध. ११ में हि सिद्ध परमातमा, में हि आतमरामः में हि ध्याता ध्येयको, चेतन मेसे नाम. १२ १ ज्योति. २ मेल. ३ ज्यारे. ४ ते ज क्षणे.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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