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________________ ( 3 ) अंतर ज्योति जगी घट जाकुंसु, ताकुं तो लोक देखावसु क्या रे; कारज सिद्ध भयो तिनको जिने, अंतर मुंड मुंडाय लीया रे. सवैया एकतीसा जेसें कोइ रुधिरको रंग्यो ज्युं मलिन पट, रुधिरसें धोयो कहूं उजळो न होत है; तेसें हिंसा करणीसें पाप दूर कीयो चाहे, ते तो शठकृत महामिथ्या तोते होत है: निरमळ निरमें पखाळत मलिन चीर, शुध रूप देख परे जेसो जाको पोत है: तेसें शुद्ध दयासें भावित करे आतमा सो, सिद्ध के समान आप सिद्धरूप होत है. ३१ कंचन सुमेरु सहु : भूमि दान देवे एक, एकने तो एक कोउ जीवकुं बचायो है; कंचन सुमेर महिदानथी बहुत विध जीव-दान अधिक पुराणनमें गायो है; इण विध भाव दान हिरदे विवेक आण, 'यार्ते यामें मेरो मन अधिक लोभायो है: १ लोहीथी. २ तुत . ३०
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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